भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों पर निबंध

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भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों पर हिंदी निबंध - Essay on Achievements of Indian Democracy in Hindi - Achievements of Indian Democracy Essay in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - लोकतंत्र भारत के कल्याण के लिए - लोकतंत्र के स्तम्भ - लोकतंत्र की समस्याएं - ईमानदार और चरित्रवान लोगों का चुनाव से हटना - अधिनायकवादी प्रवृति - उपसंहार।

परिचय | भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों की प्रस्तावना -

भारतीय लोकतंत्र भारतीय जनता के हेतु, भारतीय जनता द्वारा निर्वाचित जनता का शासन है। इसलिए भारतीय लोकतंत्र भारतीय लोकेच्छा और लोक-कल्याण का प्रतीक है। जब-जब जनता ने केन्द्रीय या प्रांतीय सत्ता को पसंद नहीं किया, उसे उसने सत्ता से ख़ारिज कर दिया।


लोकतंत्र भारत के कल्याण के लिए -

भारतीय लोकतंत्र महान भारत के कल्याण के लिए वचनबद्ध है। प्रधानमंत्री चाहे जवाहरलाल नेहरू रहे हों या इन्दिरा गाँधी, मोरार जी भाई देसाई रहे हों या विश्वनाथ प्रतापसिंह, सबने अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार जन-कल्याण और देशोत्थान के कार्य किए। यही कारण है कि आज देश औद्योगिक दृष्टि से बहु-विकसित, वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत आगे, टेक्‍नोलोजी ऋल दृष्टि से विशिष्ट और राजनोतिक दृष्टि से स्थिर है। देश का चहुँमुखी विकास भारतीय लोकतंत्र की जीवंत उपलब्धि है।


लोकतंत्र के स्तम्भ -

लोकतंत्र के चार स्तम्भ हैं न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और समाचार- पत्र। इन चारों स्तम्भों की स्वतंत्र सत्ता है, इन्हें स्वायत्तता प्राप्त है। लोकतांत्रिक भारत (डेमोक्रेट इंडिया) में चारों स्तम्भों का सुचारु रूप से संचालन भारतीय लोकतंत्र की पाँचवीं विशेष उपलब्धि है।


लोकतंत्र की समस्याएं -

भारतीय लोकतंत्र की जहाँ अनेक महती उपलब्धियाँ हैं, वहाँ उसकी समस्याएं भी बहुत हैं। ये समस्याएं स्थयं राजनीतिज्ञयों के सत्ता मोह और स्वार्थ से उपजी हैं। उनके व्यक्तिहित, दलहित से पुष्पित-पललवित हुई हैं और अब भस्मासुर बनकर उनको ही नहीं भारत के लोकतंत्र को डस रही हैं, भारत माता के शरीर को शव में परिणित करने की तैयारी से कर रही हैं।

हमारे लोकतंत्र की प्रथम समस्या है भारतीय- भारतीय में भेद । यह भेद-विष दो रूपों में लोकतंत्र को विषाक्त कर रहा है । पहला है "अल्पसंख्यकवाद तथा बहुसंख्यकवाद" । तथा दूसरा है "जातिवाद"। अल्पसंख्यकवाद तथा बहुसंख्यकवाद ने लोकतंत्र राष्ट्र को धर्म-निरपेक्ष छवि को धूमिल ही नहीं किया, देश को खंड-खंड करने का रास्ता भी प्रशस्त कर दिया है । दूसरी ओर, जातिवाद ने तो घर-घर में लड़ाई का बीज बो दिया है । एडमीशन, चुनाव तथा नौकरियों में उनके लिए पदों (सीटों) के आरक्षण ने लोकतंत्र के 'समानता' के सिद्धान्त को ही जल-समाधि ही दे दी है ।


ईमानदार और चरित्रवान लोगों का चुनाव से हटना -

लोकतंत्र शासन की दूसरी समस्या है प्रज्ञाचक्षुत्व। लोकतंत्र की आँखें नहीं होतीं । लोकतंत्र में मंत्री उपमंत्री की आँख से देखता है, उपमंत्री सचिव की आँख से, सचिव उपसचिव की आँख से, डिप्टी-सेक्रेटरी अंडर-सेक्रेटरी की तथा अंडर-सेक्रेटरी 'फाइल' की आँख से देखता है। इसका परिणाम यह होता है कि प्राय: तथ्य और कथ्य में अंतर पड़ जाता है। अयोध्या का राम मंदिर ढाँचा विवाद इस फाइली आँख का दोष है। संसद में मंत्रियों के विवादास्पद उत्तर इन फाइली नेत्रों का दोष है।


अधिनायकवादी प्रवृति -

लोकतंत्र शासन की तीसरी समस्या है अधिनायकवादी प्रवृत्ति की। भारत का प्रधानमंत्री लोकतंत्रात्मक पद्धति से इस पद को प्राप्त करता है, परन्तु प्रधानमंत्री बनने के बाद उसमें तानाशाह की आत्मा जाग्रत हो जाती है । कई मुख्यमंत्री में यही प्रवृत्ति रही है। किसी भी निर्वाचित मुख्यमंत्री को बार-बार बदलना, प्रान्तीय सरकारों के कार्य में हस्तक्षेप करना, विपक्ष शासित प्रांतीय सरकारों को तोड़ना, बिना परामर्श राज्यपालों की नियुक्ति करना, सम्बन्धित राज्य-सरकारों की सहमति के बिना राष्ट्रीय स्तर पर समझौते करना, संसद को अपनी मर्जी का चाबी-भरा खिलौना समझना लोकतंत्र की आड़ में जनतंत्र की हत्या ही तो है।

भारतीय लोकतंत्र की चौथी समस्या है, संसद में दिए जाने वाली भाषण में 'तर्क, प्रमाण और वाकचातुरी की।' तर्क और चातुरी के लिए चाहिए समझ, अध्ययन और विवेक। पार्टी के अन्धभकत सांसदों में वह चतुराई कहाँ ? वाक्चातुरी के नाम पर संसद तथा विधानसभाओं में होती है गाली-गलौज, हाथापाई, चरित्र-हिन की अश्लील बातें तथा अध्यक्ष के आसन के सम्मुख नारेबाजी। तर्क, प्रमाण और वाकचातुरी के अभाव में संसद्‌ की गरिमा कहाँ, लोकतंत्र की शोभा कहाँ ?


उपसंहार -

भारत विशाल राष्ट्र है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा महान राष्ट्र है। इस विशाल देश के प्रारम्भिक कर्णधारों द्वारा लोकतंत्रात्मक शासन को अपनाना उदार दृष्टिकोण का परिचायक है। उसमें भारत के कल्याण की दूरदर्शिता है। हाँ, सत्ता-मोह से उत्पन्न राजनीतिज्ञों का चरित्र-संकट तंथा चुनाव में भ्रष्टाचरण भारतीय लोकतंत्र की प्रबल समस्याएं आज भी हैं।


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