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रूपरेखा : प्रस्तावना - नशाबंदी का अर्थ - मादक द्रव्यों के प्रकार व दुष्प्रभाव - नशे के अनेक दुर्गुण - नशे पर प्रतिबंध लगाना हल नहीं - उपसंहार।
मदिरापान एक सामाजिक बुराई है। मदिरा पीने से आनंद का अनुभव होता है इसमें संदेह नहीं। परंतु मदिरा पीने के पश्चात मनुष्य में तर्क करने की शक्ति खत्म हो जाती है। वह अच्छे-बुरे और नैतिक-अनैतिक में फर्क नहीं कर पाता। उसका दिमाग शिथिल पड़ जाता है और विवेक शून्य हो जाता है।
वे पदार्थ जिनके सेवन से मानसिक विकृति उत्पन्न होती है नशीले या मादक द्रव्य कहलाते हैं। नशीली वस्तुओं पर प्रतिबंध या इनका व्यवस्थित प्रयोग नशाबंदी है। किसी प्रकार के अधिकार, प्रवृत्ति, बल आदि मनोविकार की अधिकता, तीव्रता या प्रबलता के कारण उत्पन्न होने वाली अनियंत्रित या असंतुलित मानसिक अवस्था नशा होता है जैसे - जवानी का नशा, दौलत का नशा या मोहब्बत का नशा इनको व्यवस्थित रूप देना नशा बंदी है।
मादक द्रव्य कौन से हैं जिनसे मानसिक स्थिति विकृत हो जाती है? वह पदार्थ हैं शराब, अफीम, गांजा, भांग, चरस, ताड़ी, कोकीन आदि। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञ तंबाकू, चाय और बीड़ी-सिगरेट को भी इस सूची में सम्मिलित करते हैं। प्राचीन काल में आसव और सोमरस को भी नशा माना जाता था। तांत्रिक अनुष्ठान में अमृत को भी नशा माना जाता है। कारण तांत्रिक अनुष्ठान में जो वारुणी है वह भी इसी अमृत की प्रतीक है। वर्तमान समय में भारत में नशाबंदी का तात्पर्य शराब और ड्रग्स पर प्रतिबंध या उसके व्यवस्थित प्रयोग से है क्योंकि यह पदार्थ अत्यधिक नशा देने वाले होते हैं।
नशीले पदार्थों के सेवन से हानियां : अति सदा विनाशकारी होती है। जब शराब का अति प्रयोग हुआ तो लत पड़ गई। इस अत्यधिक शराब ने विष बनकर तन-मन को खोखला कर दिया। आंतों को सुखा दिया, किडनी और लीवर को दुर्बल और असहाय बना दिया। परिणामस्वरूप अनेक बीमारियां बिना मांगे ही शरीर से चिपट गई। ड्रग्स ने तो शरीर के हाजमे की शक्ति को ही नष्ट कर डाला और उसके अभाव में पेट पीड़ा का असाध्य रोग दे दिया जो व्यक्ति को दुर्बल कर देता है।
नशा करने या मद्यपान करने से अनेक दुर्गुण उत्पन्न होते हैं। नशे में धुत होकर नशेड़ी अपना होश खो बैठता है, विवेक खो बैठता है। बच्चों को पीटता है, पत्नी की दुर्दशा करता है। लड़खड़ाते पैरों से मार्ग तय करता है, ऊल-जलूल बकता है। कोई ड्राइवर शराब पीकर जब गाड़ी चलाता है तो दूसरों के जान के लिए खतरनाक सिद्ध होता है। परिणामस्वरूप लाखों घर उजड़ जाते हैं. कई लोग बर्बाद हो जाते हैं। मिल्टन के शब्दों में ‘संसार की सारी सेनायें मिलकर इतने मानवों और इतनी संपत्ति को नष्ट नहीं कर सकती जितनी शराब पीने की आदत करती है।' वाल्मीकि ने मद्यपान की बुराई करते हुए लिखा है कि 'पानादर्थश्च धर्मश्च कामश्च पारिहीयते अर्थात मद्यपान करने से अर्थ धर्म और काम तीनों नष्ट हो जाते हैं।'
जो वस्तु खुलेआम नहीं बिकती, वह काले बाजार की शरण में चली जाती है। काला बाजार अपराध वृत्ति का जनक है, पोषक है। अच्छी शराब मिलनी बंद हो जाए तो घर-घर में शराब की भट्टियाँ लगेंगी, देसी ठर्रा बिकेगा। जीभ-चोंच जरि जाए कहावत के अनुसार घटिया शराब से लोग बिना परमिट परलोक गमन करने लगेंगे। जो राष्ट्र के लिए घोर अनर्थ होगा।
इसलिए नशे पर प्रतिबंध लगाना श्रेयस्कर नहीं। दूसरे, इससे राजस्व की हानि होगी। तीसरे, औषधि के रूप में शीतकाल में सेना के लिए शराब का अपना उपयोग है। अतः इसके व्यवस्थित उपयोग पर बल देना चाहिए। गुजरात, आंध्र प्रदेश, मिजोरम और हरियाणा राज्य सरकारों ने पूर्ण नशाबंदी करके देख लिया। करोड़ों रुपए राजस्व की हानि तो हुई ही, शराब की तस्करी का धंधा जोरों से चल पड़ा ,नकली और जहरीली शराब कुटीर उद्योग की तरह पनपने लगी। दूसरी ओर डिस्टलरियों के बंद होने से इस कारोबार में लगे हजारों लोग बेरोजगार हो गए। पहले ही इन प्रांतों में बेरोजगारी थी, पूर्ण नशाबंदी ने बेरोजगारों की संख्या बढ़ा दी। आर्थिक कमर टूटते देख इन सरकारों ने पूर्ण नशाबंदी आदेश को वापस ले लिया।
सुरालयों की संख्या कम करके देसी भट्टियों को को जड़-मूल से नष्ट करके सार्वजनिक रूप में शराब पीने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर दुरुपयोग को रोका जा सकता है इसे हतोत्साहित किया जा सकता है।
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