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रूपरेखा : प्रस्तावना - भारत और त्योहार - होली के समय की प्राकृतिक - संबंधित पौराणिक कथाएँ - होली का वर्णन - आनंद, गीत - दोषों का निवारण - उपसंहार।
दीवाली हमें प्रकाश का संदेश देती है, रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के स्नेह की गौरवगाथा गाता है, दशहरा बुराई पर भलाई की विजय का पर्व है, तो होली का त्योहार हमारे जीवन को आनंद और उत्साह से भर देता है।
होली का त्योहार ऋतुराज वसंत की मादकता और मोहकता का संदेश लेकर आता है। इस समय पत्ते-पत्ते में, डाल-डाल में, वृक्ष-वृक्ष में नवजीवन का संचार होता है। किसान अपनी नई फसल देखकर संतोष का अनुभव करते हैं। ऐसे समय में बड़े उल्लास के साथ फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होली का यह मस्तीभरा त्योहार मनाया जाता है।
होली के बारे में भक्त प्रहलाद की कथा प्रचलित है। ईश्वरभक्त प्रह्लाद को दंड देने के इरादे से पिता हिरण्यकशिपु ने अनेक प्रयत्न किए, किंतु भक्त प्रह्लाद बाल-बाल बच गया ! हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान था कि आग उसे जला न सकेगी। इसलिए हिरण्यकशिपु के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद को जरा-सी भी आँच नहीं आई ! इस प्रकार आसुरी शक्ति पर दैवी शक्ति की विजय हुई। लोगों ने रंग बिखेरकर आनंदोत्सव मनाया। इस प्रकार होली के पावन पर्व का प्रारंभ हुआ। यह मान्यता भी प्रचलित है कि बाल कृष्ण ने पूतना राक्षसी को मारकर इसी दिन गोपियों के साथ रासलीला की थी और रंग खेलकर उत्सव मनाया था।
होली के आगमन के पहले ही घर-घर में इस उत्सव की धूम मच जाती है। लोग अपने-अपने घरों की सफाई करते हैं। गृहिणियाँ मधुर पकवान तैयार करती हैं। बाजारों में रंगों की दुकानें खुल जाती हैं। ढेरों लकड़ियाँ इकट्ठी की जाती हैं। फाल्गुन-पूर्णिमा की शाम को होली जलाई जाती है। महिलाएँ नारियल, कुंकुम और चावल से होली की पूजा करती हैं। बच्चे खुशी के मारे तालियाँ बजाते हैं। नए अनाज को होली की आग में सेंककर उसका प्रसाद बाँटा जाता है।
दूसरे दिन धुलेंडी को लोग होली खेलते हैं। लोग रंगभरी पिचकारियाँ लेकर निकल पड़ते हैं। सभी प्रकार के भेदभाव भुलाकर लोग एक-दूसरे पर रंग छिड़कने का आनंद लूटते हैं। सभी जगह गाने-बजाने और नृत्य के दृश्य दिखाई देते हैं। वातावरण उल्लासपूर्ण होता है। एक ओर रंग, दूसरी ओर गुलाल। बच्चे, युवक और बूढ़े, कन्याएँ और स्त्रियाँ सभी रंग से तर !
यह दुःख की बात है कि कुछ लोग इस दिन भाँग या शराब पीते हैं, दूसरों पर कीचड़ डालते हैं, हानिकारक रंगों का प्रयोग करते हैं और अश्लील गीत गाते हैं। कुछ लोग अनाज और गाय-भैंसों का चारा भी होली के नाम पर स्वाहा कर देते हैं। इन बुराइयों से बचना चाहिए।
हमें होली के रंगीन त्योहार को शुद्ध रंग और निर्मल अनुराग से मनाना चाहिए। होली रंगों का राम बने, सभ्यता और संस्कृति का उपहास नहीं। इस तरह होली का यह महा पर्व खुशियाँ के साथ मनाई जाती है।
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