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रुपरेखा : ऋतु की पहचान - शरद् ऋतु का आगमन - जाड़े से बचाव के उपाय - शिशिर ऋतु - सर्दी का यौवन रूप - सामासिक रूप प्रकट करना - स्वास्थ्य की दृष्टि सर्वोत्तम - पर्वों की दृष्टि से महत्त्व - उपसंहार।
जाड़े की ऋतु
ऋतु की पहचानतापमान को अत्यधिक कमी, हृदय कँपाने वाला तोक्ष्ण शीत, वायु का सन्नाटा, शिशिर शर्वरी में शीत समीर का प्रचण्ड वेग ही पहचान है, जाड़े की ऋतु की। उत्साह, उमंग और उल्लास की प्रेरणा, वस्त्र-परिधान का आनन्द, विभिन्न पदार्थों की खाने और पचाने को मस्ती, वातानुकूलित कक्षों का मुख, मन्द धूप की सुहानी उष्णता का आनन्द लूटना ही पहचान है, जाड़े की ऋतु की। प्रकृति का समयनुकूल परिवर्तन ईश्वरीय रचना का अद्भुत क्रम है । कुसुमाकर वसंत के आगमन के पश्चात् अंशुमाली भगवान् का तेज तप्त वातावरण, लूह के सन्नाटे मारते हुए झघटे के आतंक से व्याकुल प्राणियों को करते हुए ग्रीष्म का आना, और उसके पश्चात् धरा और धरावासियों को भरपूर तृप्त करती सघन बुँदियों की अविरलधारा में वर्षा ऋतु की श्वेत आभा के दर्शन होते हैं।
शरद् ऋतु का आगमनवर्षा के अंतर वातावरण में परिवर्तन के कारण द्वार खटाया शरद् ऋतु का । मेघ शांत हुए, सरिताओं का जल निर्मल हुआ। वनों में कास फूले, चाँदनी निर्मल हुई। शरद् जब अपने यौवन पर आया तो उसने अपने साथी हेमन्त को पुकारना शुरू किया और फिर उसने और शिशिर को निमंत्रित किया। वस्तुत: मार्गशीष, पौष, माघ और फाल्गुन के चार मास हीं जाड़े के हैं। इनमें भी सर्वाधिक ठंड पौष-माघ में ही पड़ती है।
जाड़े से बचाव के उपायजाड़े से बचाव के कई उपाय है। जैसे जाड़े में आग के पास बैठने पर आँखों में धुआँ भर जाने के कारण आँसू बहते हैं, फिर भी लोग आग के पास बैठने की कोशिश करते हैं। लोग आग जलाकर छाती से लटका कर रखते हैं। मानो लोग अग्नि को भी भयंकर सर्दी से डरा हुआ जानकर उसके ऊपर हाथ फैला कर उसे अपनी छाती की छाया में छिपाकर रखते हैं । अर्थात् आग सेकने के लिए उसके ऊपर हाथ फैलाते हैं तथा कांगड़ी में भरकर छाती से लगाते हैं।
शिशिर ऋतुशिशिर ऋतु में सर्दी इतनी अधिक बढ़ जाती है कि सूर्य भी चन्द्रमा का स्वरूप प्राप्त कर लेता है। अर्थात् शिशिर ऋतु में सूर्य का तेज इतना कम हो जाता है कि वह चन्द्रमा के समान ठंडा हो जाता है। धूप में चाँदनी की शोभा प्रकट होने लगती है, अर्थात् धूप भी चाँदनी के समान शीतल प्रतीत होने लगती है। सर्दी के कारण दिन में रात्रि की झलक दिखाई देने लगती है, अर्थात् सर्दी के कारण दिन का समय भी रात के समान बहुत ठंडा हो जाता है।
सर्दी का यौवन रूपसर्दी का यौवन आया। वह उत्तरोत्तर अपना भीषण रूप प्रकट करने लगा। शीत का हृदय कँपाने वाला वेग, हिमपूरित वायु के सन्नाटे ने मनुष्य को आश्चर्य किया। गर्म वस्त्र धारण करने की विवश किया। ऊन से बने वस्त्रो की इंद्रधनुषी छटा जगत को सुशोभित करने लगी। कमरों में हीटर लगे, अँगीठी सिलगी। वैज्ञानिक़ उपकरणों ने सर्दी की ठंड की चुनौती स्वीकार की। सर्दी के मौसम में सायंकाल और रात्रि के समय शौतवायु के प्रचंड वेग से शरीर कंपायमान रहता है और चित्त बेचैन हो जाता है। रुई के गद्दे, रजाई, सौड़, कम्बल शयन के साथी और सुखकर बनते हैं।
सामासिक रूप प्रकट करनाकभी-कभी मुक्ताफल सदृश ओस की बूँदे जमकर घोर अन्धकारमय वातावरण का सृजन करती हैं। वही दूसरी ओर कोहरा अपना सामासिक रूप प्रकट करता है। सर्वप्रथम उसका आक्रमण सूर्य देव पर होता है। शीतमय वातावरण से सूर्य निस्तेज-सा हो जाता है तो ठंड बढ़ने लगती है। शीतकाल की ठंडी तेज हवाओं को शांत करती है वर्षा। शीतकालीन वर्षा न केवल तीर जैसी चुभती हुई हवा से बचाएगी, अपितु पृथ्वी की हरियाली को द्विगुणित करके, खेती की उपज बढ़ाएगी, गेहूँ, गन्ने को बढ़ाएगी।
स्वास्थ्य की दृष्टि सर्वोत्तमआयुर्वेद की दृष्टि से हेमंत और शिशिर में पित्त का प्रकोप होता है अत: पित्त के उपद्रव से बचने के लिए इस काल में पित्तकारक पदार्थो के सेवन से बचना चाहिए। दूसरे इस ऋतु में ही गरिष्ठ और पौष्टिक भोजन का आनंद है। जो खाया, सो पच गया और रक्त बन गया। स्वास्थ्यवर्धन की दृष्टि से यह सर्वोत्तम काल है। आयुर्वेद-विज्ञान में स्वास्थ्यवर्धक स्वर्णभस्म युक्त औषधियों के सेवन का विधान इन्हीं चार मास में है। सूखे मेबे, काजू, बादाम, अखरोट, किशमिश, सूखी खुमानी तथा मूँगफली जाड़े की ऋतु के वरदान हैं। सेव, सन्तरा, केला, चीकू, इस काल के मौसमी फल हैं। काजू की बरफी, मूँग की दाल का हलवा, पिन्नी, सोहनहलवा की टिकिया तथा रेवड़ी-गजक इस मौसम के चहेते मिष्टल हैं। चाय-कॉफी शीतकाल की सर्दी को चुनौती देने वाले प्रकृति के वरदान पेय हैं।
पर्वों की दृष्टि से महत्त्वपर्वों की दृष्टि से 'मकर संक्रांति' शीतकाल का मुख्य महत्त्वपूर्ण पर्व है। पंजाब की लोहड़ी, असम का 'माघ बिहू', तमिलनाडु का 'पोंगल' मकर संक्रांति के पर्याय हैं। ईसाई पर्वों में ईसा मसीह का जन्मदिन २५ दिसंबर जाड़े की ऋतु को आनन्दवर्धक बनाते हैं। विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती के पूजन का दिवस वसंत पंचमी भी माघ शुक्ल पक्ष में ही आती है। राष्ट्रीय पर्वो में गणतंत्र दिवस (२६ जनवरी) अपनी विशाल, भव्य और इन्द्रधनुषी परेड तथा शोभा-यात्रा को जाड़े की ऋतु में ही दर्शाता है। जाड़े की ठंड से सूर्य देव भी सिकुड़े। वह देर से दर्शन देकर शीघ्र अस्ताचल गमन करने लगे।
उपसंहारशरद ऋतु में दिन छोटे हो जाते है और रात लम्बी हो जाती है। सूर्य का तेज भी शीत में क्षीण हो जाता है। सर्दी के मौसम में पाचन शक्ति बहुत ही मजबूत होती है। त्वचा का विशेष ध्यान रखना होगा क्यूंकि सर्दी के मौसम में त्वचा रुखी और सफ़ेद हो जाती है। शिशिर ऋतु में शरीर में चुस्ती रहती है और शरीर स्वस्थ रहता है।
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