ADVERTISEMENT
रुपरेखा : वर्षा ऋतु का परिचय - वर्षा ऋतु के अनेक रूप - सावन के मन - वर्षा ऋतु में हिमपात अथवा स्नोफॉल का मनमोहक दृश्य - चाँदनी रात - वर्षा का आँख-मिचौनी खेलना - वर्षा से लाभ - वर्षा से हानियाँ - उपसंहार।
वर्षा ऋतु का परिचयमौसम ठंडा हो गया और प्रकृति हरी - भरी हो उठी । पीली पत्तियों और मुरझाए पेड़ों पर हरियाली छा गई। उपवन में पुष्प खिल उठे। कुंजों में लताएं एक-दूसरे से आलिगन-बड्ध होने लगीं। सरिता-सरोवर जल से भर गए। उनमें कमल मुकुलित बदन खड़े हुए। नदियाँ इतरातीं, इठलातीं अठखेलियाँ करतीं, तट-बंधन तोड़तीं बिछुड़े हुए पति सागर से मिलने निकल पड़ीं। सम्पूर्ण वायुमंडल शीतल और सुखद हुआ। भवन, मार्ग, वीथियाँ, लता-पादप धुले से नजर आने लगे | वातावरण मधुर और सुगंधित होने लगा । जन-जीवन में उल्लास छा गया। पिकनिक और सैर-स्पॉट का मौसम आ गया। पेड़ों पर झूले पड़ गए। किशोर-किशोरियाँ पेंगे भरने लगीं। उनके कोकिल कंठी से मल्हार फूट निकाला।
वर्षा ऋतु के अनेक रूपइस ऋतु में आकाश में बादलों के झुंड नई-नई क्रीडा करते हुए अनेक रूप धारण करते हैं। मेघमालाच्छादित गगन- मंडल में इन्द्र के वज़पात से चिनगी दिखाने के समान विधद्युल्लता की बार-बार चमक और चपलता देखकर वर्षा में बन्दर भी भीगी बिल्ली बन जाते हैं। मेघों में बिजली की चमक में प्रकृति सुन्दरी के कंकण मनोहारिणी छवि देते हैं। घनघोर गर्जन से ये मेघ कभी प्रलय मचाते हैं तो कभी इन्द्रधनुषी सतरंगी छटा से मन मोह ले लेती हैं। वन-उपवन तथा बाग-बगीचों में यौवन चमकने लगता है | पेड़-पौधे स्वच्छन्दतापूर्वक भीगते हुए मस्ती में झूम उठते है। हरे पत्ते की हरी डालियाँ रूपी कर नील -गगन को म्पर्श करने के लिए मचल उठे। पवन वेग से गुंजित तथा कंपित वृक्षावली सिर हिलाकर चित्त को अपनी ओर बुलाने लगीं। वर्षा का रस रसाल के रूप में टप-टप गिरता हुआ टपका बन जाता है तो मंद-मंद गिरती हुई जामुनें मानों भादों के नामकरण-संस्कार को सूचित कर रही हों। बाबाजी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी हुई' मोतियों से जड़ी कूकड़ी की तो बात ही निराली है।
सावन के मनसावन की मनभावती फुहारों और धीमी-धीमी शीतल पवन के चलते मतवाले मयुर अपने पंखों को दिखा- दिखाकर नाच रहे हैं । पोखरों में मेंढ्रक टर्र-टर्र करते हुए अपना गला फाड़ रहे हैं। बगुलों की पंक्ति पंख फैला-फैलाकर चाँदनी-सी तान रहे हैं। मछलियाँ जल में डुबकी लगाकर जल-क्रीडा का आनन्द ले रही हैं। रात्रि में जुगनू अपने प्रकाश से मेघाच्छादित आकाश में दीपावली के दीपक समान टिमटिमा रहे हैं। केंचुए, बिच्छू, मक्खी-मच्छर सैर का आनन्द लेने भूतल पर विवरण कर रहे हैं। खगगण का कलरव, झींगुर समूह की झंकार वातावरण को संगीतमय बना रहे हैं। सचमुच सावन का ये मन देख कर मनुष्य तथा पशु-पक्षियों नाचने लगते है।
वर्षा ऋतु में हिमपात अथवा स्नोफॉल का मनमोहक दृश्य इस ऋतु में पर्वतों पर हिमपात अथवा स्नोफॉल का दृश्य मनमोहक होता है। हल्की -सी हवा में बर्फ रूई के फायों के रूप में हवा में तैरती हुई जब भूमि पर उतरती है तो उस नयनाभिराम दृश्य को देखकर हृदय नाच उठता है। पर्वतीय नगरों का चप्पा-चप्पा हिममय हो जाता है | पेड़ पौधे सब बर्फ से लद जाते हैं। मकानों की छतें बर्फ से ढक जाती हैं। चारों ओर सफेदी का साम्राज्य छा जाता है। बर्फ से ढकी बाड़ की जाली और तार चाँदी कि समान चमकते हैं। देवदार वक्षों को देखकर लगता है स्वर्ग के रुपहले विचित्र देवदार निकल गए हैं या खंभों के सहारे विकराल मक्के की बालें लटकाई गई हैं।
चाँदनी रातचाँदनी रात में तो हिमपात अथवा स्नोफॉल का सौन्दर्य अत्यधिक विषयी बन जाता है, क्योंकि आकाश से गिरती हुई बर्फ और बर्फ से ढके हुए पदार्थ शुभ्र ज्योत्स्ना की आभा से चमकते हुए बहुत सुन्दर लगते हैं। चाँदनीं के कारण सारा दृश्य दूध के समुद्र के समान दिखाई देता है। नयनाभिराम हिमराशि की श्वैतिमा मन को मोह लेती है।
वर्षा का वीभत्स रूप है अतिवृष्टि । अतिवृष्टि से जल-प्रलय का दृश्य उपस्थित होता है। दूर-दूर तक जल ही जल तथा मकान, सड़क, वाहन, पेड्-पौधे, सब जल मग्न हुए दीखते है। जीवन-भर की संचित सम्पत्ति, पदार्थ जल देवता को अर्पित तथा जल-प्रवाह के प्रबल वेग में नर-नारी, बालक-वृद्ध तथा पशु बह रहे हैं। अनचाहे काल का ग्रास बन रहे हैं। गाँव के अपनी प्रिय स्थली को छोड़कर शरणाथी बन सुरक्षित स्थान पर शरण लेने को विवश हैं।
वर्षा का आँख-मिचौनी खेलनायहां है वर्षा, जो आँख-मिचौनी खेला करती है । इसके आगमन और गमन के पूर्वाभास में मौसम विशेषज्ञ भी धोखा खा जाते हैं। बेचारी आकाशवाणी तथा दूरदर्शन अविश्वसनीय सिद्ध हो जाते हैं। अभी-अभी उमड़-घुमड़ कंर बादल आए और “जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं' के अनुसार बिन बरसे चले गए। कभी-कभी आकाश साफ होता है और अस्मात् ही इन्द्र देवता बरस पड़ते हैं । थोड़ी देर बाद वर्षा रुकने की सम्भावना होती है, पर 'शनीचर की झड़ी, न कोठी न कड़ी ' बन जाती है।
वर्षा से लाभवर्षा होगी तो खेती फले-फूलेगी। अकाल नहीं पड़ेगा। अनाज महँगा नहीं होगा। पर्वतों पर पड़ी बर्फ सरिता-सरोवर और नद-नदियों का जल से जीवधारियों की प्यास शान्त रखेगी । जलवायु पवित्र होगा, पृथ्वी का कूड़ा-कचरा धुल जाएगा, चातक की प्यास बुझ जाएगी।
वर्षा से हानियाँवर्षा से अनेक हानियाँ भी हैं। सड़कों पर और झोंपड़ियों में जीवन व्यतीत करने वाले लोग भीगे बस्त्रों में अपना समय गुजारते हैं। उनका उठना-बैठना, सोना-जागना, खाना-पीना दुश्वार हो जाता है। वर्षा से मच्छरों का प्रकोप होता है, जो अपने दंश से मानव को बिना माँगे मलेरिया दान कर जाते हैं । वायरल फीवर, टायफॉइड बुखार, गैस्ट्रो एंटराइटिस, डायरिया, डीसेन्ट्री, कोलेर आदि रोग इस ऋतु के अभिशाप हैं।
उपसंहारजगत का जीवन, प्राणियों का प्राण, धरा का श्रृंगार, नद-नदियों, बन-उपवन का अलंकरण, हृदय में उल्लास और उत्साह का प्रेरक, प्रेम और कामना की सृजक है वर्षा ऋतु। इस ऋतु में लोगों को सावधानी से रहना चाहिए क्यूंकि इस ऋतु में लोग अधिक बीमार होते है। मानव जाति को बारिश के पानी को संचित करने का उपाय ढूँढना चाहिए।
ADVERTISEMENT