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रूपरेखा : प्रस्तावना - प्रवास का आयोजन - मार्ग का सौंदर्य - आवास-व्यवस्था - देलवाड़ा के जैन मंदिर - अन्य दर्शनीय स्थल - मन पर प्रभाव और प्रेरणा - उपसंहार।
पहाड़ किसे आकर्षित नहीं करते ? किसी पहाड़ी स्थान में कुछ दिन बिताने का आनंद अनोखा होता है। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में मुझे पिताजी के साथ सौदर्यधाम आबू पर्वत पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
आबू रोड तक की यात्रा हमने रेलगाड़ी से की। आबू रोड से माउंट आबू जाने के लिए हम राजस्थान परिवहन निगम की बस में सवार हुए। दूर से आबू पर्वत के दर्शन होते ही मेरा दिल उछल पड़ा। उसके सर्पाकार मार्ग पर हमारी बस मंद गति से चल रही थी। एक ओर शिला-चट्टानों के ऊँचे-ऊँचे ढेर थे, तो दूसरी ओर बीहड़-गहरी खाइयाँ। हरे-भरे दृश्य और शीतल पवन मन को एक निराला ही आनंद दे रहे थे।
बहुत ऊँचाई पार करने के बाद हमारी बस रघुनाथ मंदिर के निकट खड़ी हो गई। उस समय सुबह के नौ बज रहे थे। सड़कों पर मेटाडोर, जीपें और कारें दौड़ रही थीं।
जगह जगह टूरिस्ट गाइड सेंटरों, होटलों और यात्री आवासों के साइन बोर्ड लगे हुए थे। हम भी एक लॉज में उतरे। पिताजी ने वहाँ एक कमरा पहले से ही आरक्षित करा लिया था।
भोजन और विश्राम के बाद हम आबू के प्रसिद्ध और ऐतिहासिक देलवाड़ा मंदिर देखने गए। उन मंदिरों को देखकर हम दंग रह गए। चारों ओर कला का साम्राज्य फैला हुआ था। देवरानी जेठानी के झरोखों ने तो सचमुच हमारा दिल जीत लिया। नक्काशी की अनोखी बारीकी और शिल्प की सजीवता देखकर हम देखते ही रह गए। वहाँ उपस्थित विदेशी पर्यटकों को मैंने देलवाड़ा के मंदिरों की कलात्मकता की प्रशंसा करते कई बार सुनी थी। आज उन्हें प्रत्यक्ष देखा। एक गाइड ने हमें पूरे विस्तार से बताया कि किस प्रकार तेजपाल और वस्तुपाल ने उन मंदिरों का निर्माण कराया था।
अगले दिन हमने टॉड रॉक और पोलो ग्राउंड देखा। फिर हम वशिष्ठाश्रम गए। अचलगढ़ पर स्थित मंदिर तथा भर्तृहरि की गुफा भी हमने देखी। पिताजी हमें अर्बुदा देवी के मंदिर में ले गए। नखी तालाब में हमने नौकाविहार का मजा लूटा और सनसेट प्वाइंट पर सूर्यास्त का मनोहर दृश्य भी देखा। एक दिन हमने आबू के सबसे ऊँचे गुरु शिखर पर दत्तात्रेय के पदचिह्नों के भी दर्शन किए। वहाँ बँधे विशाल घंटे को कई बार बजाकर मैंने उसकी कर्णप्रिय ध्वनि का आनंद लिया।
इस प्रकार आबू पर्वत पर एक सप्ताह बिताकर हम वहाँ से बिदा हुए। कितना प्रफुल्लित था मेरा मन ! उस सौंदर्यधाम की हवा में निराली मस्ती थी। मैं अपने अंग-अंग में अनोखी ताजगी का अनुभव कर रहा था। आबू पर्वत की इस यात्रा ने हममें भरपूर आनंद और उत्साह भर दिया था। वहाँ के कलात्मक वैभव की मधुर स्मृतियाँ आज भी हमें आनंद का अनुभव कराती हैं।
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