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रूपरेखा : प्रस्तावना - बगीचे में पहुँचना - प्राकृतिक सौदर्य - जलकुंड की शोभा - बगीचा और मनुष्य - मित्र से मुलाकात - उपसंहार।
बगीचे में एक-दो घंटे की सैर के समान आनंददायक और क्या हो सकता है ! बगीचे की मोहक सुंदरता देखकर दिल भी बाग-बाग हो जाता है। उस दिन शाम को जब मैं उद्यान पहुँचा तो ऐसा लगा मानो संसार का सारा सुख यहीं सिमट आया हो।
बगीचे की सुंदरता दिल पर जादू कर रही थी। मखमल-सी मुलायम हरी-भरी घास मानो मुझे बैठने का निमंत्रण दे रही थी। मैं बैठ गया। तबीयत हरी हो गई। चमेली और जूही, गुलाब और हरसिंगार के फूलों से बगीचे की शोभा में चार चाँद लग गए थे। फूलों पर भी मँडरा रहे थे। वायु के झोंकों से पेड़-पौधे झूम उठते थे। पत्तों की मर्मर-ध्वनि सुनाई दे रही थी। पक्षियों का मोहक कलरव, कोयल की 'कुहू कुहू' और पपीहे की 'पिऊ पिऊ' की ध्वनि वातावरण में मिठास भर रही थी।
थोड़ी देर बाद मैं फौआरे के पास गया। फौआरे से जल की रंगबिरंगी धाराएँ निकल रही थीं। ऊपर जाकर वे नन्ही-नन्ही बूंदों की झड़ी में बदल रही थीं। सूर्य की अंतिम किरणों के कारण इन बूंदों में इंद्रधनुष की छटा दिखाई दे रही थी। जलकुंड में बतख के जोड़े कल्लोल कर रहे थे। कितना मोहक दृश्य था वह !
बगीचे का वातावरण बहुत मनोरंजक था। कोमल घास पर बैठे युवक-युवतियों की रंगीली बातों ने वातावरण को और भी रसमय बना दिया था। कुछ बच्चे झूला झूल रहे थे, कुछ बच्चे सरकपट्टी पर फिसलने का मजा ले रहे थे। रंगबिरंगी फ्राक पहने छोटी-छोटी बालिकाएँ उड़ती हुई तितलियों के समान सुंदर लग रही थीं। एक ओर माली पौधों को बड़ी लगन से सींच रहा था। बाग में फूलों की खुशबू थी, तो हृदय में खुशियों की मस्ती। बगीचे के एक कोने में बेंचों पर बैठे कुछ वृद्ध स्त्री-पुरुष अपनी चर्चा में मग्न थे।
इतने में एक मित्र से भेंट हो गई। हम इधर-उधर टहलने लगे। सूर्य भगवान बिदा लेने की तैयारी कर रहे थे। धीरे-धीरे उनकी लालिमा कम हो रही थी। पूनम का चाँद अमृत की वर्षा करता हुआ झाँकने लगा था। वातावरण में चारों ओर शांति का साम्राज्य था। घूमते-घूमते हम एक पेड़ के नीचे बैठ गए। तब मेरे आग्रह पर मित्र ने एक कविता सुनाई। उसकी मीठी आवाज सुनकर मेरा आनंद दुगुना हो गया।
शाम गहराने लगी थी। बगीचे से लोग बिदा होने लगे थे। हम भी उठे और आँखों में नए सपने, होठों पर नए और दिल में नई खुशियाँ लिए घर ओर चल दिए।
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