एक रेल-दुर्घटना पर निबंध

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एक रेल-दुर्घटना का दृश्य पर हिंदी निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8, और 9 के विद्यार्थियों के लिए। - Essay Writing on a Train Accident in hindi - Scene of a train accident in hindi for class 5, 6, 7, 8 and 9 Students. Essay on View of a Train Accident in Hindi for Class 5, 6, 7, 8 and 9 Students and Teachers.

रूपरेखा : प्रस्तावना - आकस्मिक दुर्घटना का अनुभव - यात्रियों की करुण दशा - दुर्घटना का कारण - यात्रियों की सहायता - रोमांचक स्मृति - उपसंहार।

वैसे तो यह सारा जीवन ही सुख-दुःख का अनोखा खेल है, लेकिन कुछ आकस्मिक घटनाएँ इस खेल को अत्यंत भयावह और दुःखद बना देती हैं। ऐसी ही एक घटना पिछले साल मेरे जीवन में घटी, जिसकी स्मृति आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर देती है।

मैं दिवाली की छुट्टियाँ मनाने अपने चाचा के यहाँ नागपुर जा रहा था। हमारे आरक्षित डिब्बे में पुरुष, स्त्रियाँ, बच्चे सभी तरह के यात्री थे। सबके चेहरों पर यात्रा का आनंद था। कुछ यात्री बातचीत में मग्न थे, कुछ यात्री अखबार या साप्ताहिक पढ़ने में तल्लीन थे और कुछ ताश का आनंद ले रहे थे। गाड़ी धक्-धक्-धक् करती हुई दौड़ रही थी। धीरे-धीरे बाहर अँधेरा गहराया। अचानक एक जोर का धक्का लगा। मैं अपनी जगह से नीचे लुढ़क पड़ा। उस धक्के ने सारे डिब्बे के यात्री, संदूक, सामान, बिस्तरे, पानी की सुराही आदि को उलट-पुलट दिया। किसी का सिर बेंच से टकराया, तो कोई फर्श पर आ गिरा। पूरे डिब्बे में मानो भूकंप-सा आ गया !

गाड़ी एक झटके के साथ रुक गई। रोने-चिल्लाने की आवाजें गहरी शांति को चीरने लगीं। सद्भाग्य से मुझे कोई चोट नहीं आई थी, पर कई यात्रियों की हालत गंभीर थी। किसी के सिर से रक्त बह रहा था, किसी के हाथ की हड्डी टूट गई थी, तो कोई ऊपर से किसी संदूक के गिरने से घायल हो गया था। औरतें और बच्चे बुरी तरह से चिल्ला रहे थे। आसपास का सारा वातावरण चीखों की आवाजों से भर गया था। पल में हुए इस प्रलय ने सबको विस्मित, भयभीत और चिंतित कर दिया था।

पता चला कि अकोला स्टेशन से कुछ पहले ही हमारी गाड़ी पटरी बदलते वक्त सामने से आती हुई तेज गाड़ी से टकरा गई थी। अगले दो डिब्बे उस गाड़ी के टकराने से उलट गए थे। हमारा डिब्बा बहुत पीछे था, इसलिए बच गया था। पटरी के दोनों तरफ भारी कोलाहल हो रहा था। पुलिस और सुरक्षा-दल के लोग संकटग्रस्त यात्रियों की मदद करने के लिए आ पहुँचे थे।

सुरक्षित यात्रियों के लिए एक बस आकर रुकी और उन्हें उसमें बैठकर अकोला स्टेशन पर जमा होने का आदेश दिया गया। बस में बैठते हुए मैंने देखा कि वहाँ एंबुलेंसों की कतार लग गई थी और डॉक्टरों का एक दल भी आ पहुँचा था। घायलों की दर्दभरी कराहें वातावरण में फैल रही थीं और लाशों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

इसके बाद मैं वहाँ से अगली ट्रेन द्वारा दूसरे दिन नागपुर पहुँचा। अखबार में दुर्घटना के समाचार पढ़कर चाचा-चाची को बड़ी चिंता हो रही थी, पर मुझे भला-चंगा देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। किंतु कई दिनों तक उस भयानक दुर्घटना का भयंकर दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमता रहा।


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