रेलवे स्टेशन पर एक घंटा पर निबंध

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रेलवे स्टेशन पर एक घंटा पर हिंदी निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8, और 9 के विद्यार्थियों के लिए। - Essay Writing on one hour at railway station in hindi - One Hour at Railway Station Essay in hindi for class 5, 6, 7, 8 and 9 Students. Essay on an hour at railway station in Hindi for Class 5, 6, 7, 8 and 9 Students and Teachers.

रूपरेखा : प्रस्तावना - स्टेशन पर जाने का कारण - स्टेशन का वर्णन - गाड़ी आने पर... - गाड़ी छूटने से पहले - उपसंहार।

रेलवे स्टेशन एक सार्वजनिक स्थान है। चहल-पहल तो दूसरी जगहों पर भी होती है, पर रेलवे स्टेशन की चहल-पहल कुछ और ही प्रकार की होती है।

पिछली 11 नवंबर को मुझे राजधानी एक्सप्रेस से पटना जाना था। टिकट मैंने पहले ही आरक्षित करा लिया था। स्टेशन पहुँचने पर पता चला कि गाड़ी एक घंटा देर से छुटेगी।

स्टेशन के परिसर में बड़ी हलचल थी। कारों, टैक्सियों और रिक्शों से यात्री आ रहे थे। वाहनों के पहुँचते ही लाल कुर्तेवाले कुली उनकी ओर दौड़ पड़ते। मजदूरी तय कर वे यात्रियों का सामान उठाकर प्लेटफार्म की तरफ चल पड़ते। टिकट-घर की खिड़कियों के सामने लोगों की लंबी कतारें थीं। कुछ लोग कतार के बीच में घुसने की कोशिश कर रहे थे। उनकी इस हरकत पर पीछे के लोग चिल्लाए। शोर सुनकर पुलिस आ गई। प्लेटफार्म टिकट के लिए भी लंबी कतार थी।

प्लेटफार्म पर स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सभी तरह के लोग थे। कुछ लोगों की वेश-भूषा बता रही थी कि वे किस प्रांत के हैं। बुक स्टॉल पर काफी लोग खड़े थे। कोई अखबार खरीद रहा था, कोई पत्रिकाएँ। 'रेल आहार' के स्टालों पर लोग आलू वड़ा, समोसा, पेटिस, कचौड़ी आदि खाद्य पदार्थ खरीद रहे थे। शीत पेय तथा आइसक्रीम की बहुत माँग थी। कुछ लोग गरमा-गरम चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। खिलौनों के स्टॉल पर माता-पिता बच्चों का खिलौने दिला रहे थे। कई यात्री प्याऊ पर पानी पी रहे थे या वॉटर बैग में पानी भर रहे थे। कुली छोटी-छोटी हाथगाड़ियों पर सामान ढोते हुए आ-जा रहे थे।

इसी समय एक रेलगाड़ी स्टेशन पर आई। प्लेटफार्म पर उसके रुकते ही यात्रियों का सामान उतारने के लिए कुली दौड़ पड़े। बहुत से यात्री खुद अपना सामान लेकर नीचे उतर पड़े। जो लोग अपने प्रियजनों को लेने आए थे, वे उन्हें लेकर बाहर निकलने लगे। फाटक पर खड़े टी. सी. बाहर निकलने वाले यात्रियों से टिकट ले रहे थे।

इसी बीच हमारी गाड़ी प्लेटफार्म पर लगी। उसका इंतजार करने वाले यात्रियों में हलचल मच गई। गाड़ी में जगह पाने के लिए कुछ कुली और यात्री चलती हुई गाड़ी में चढ़ने लगे। सामान अंदर धकेला जाने लगा। डिब्बों से झगड़ने की तेज आवाजें आने लगीं। छोटे बच्चे चिल्ला रहे थे। कोई किसी की नहीं सुन रहा था। आरक्षित डिब्बों में शोरगुल कम था।

अब यात्री अपनी-अपनी जगह बैठ गए थे। कुछ देर पहले झगड़ने वाले लोग अब मित्रों जैसा व्यवहार करने लगे। बिदा करने आए लोग बाहर से अंदर बैठे यात्रियों को सलाह-सूचनाएँ देने लगे। इतने में गार्ड ने सीटी दी। 'शुभ यात्रा', 'गुड बाई', 'पहुँचते ही फोन करना' आदि शब्दों से प्लेटफार्म गूंज उठा। लोग हाथ हिलाकर अपने स्वजनों को बिदा देने लगे। मैं भी झटपट अपनी आरक्षित सीट पर जा बैठा।

पलभर में हमारी गाडी स्टेशन से बाहर निकल आई। मैंने खिड़की से पीछे प्लेटफार्म की तरफ देखा। बहुते-से अब भी टाटा, बाई-बाई करते हुए हिल रहे थे।


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