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रूपरेखा : प्रस्तावना - गंतव्य स्थान तक पहुँचना - वहाँ का वातावरण - दर्शनीय स्थल - अन्य मनोरंजन - बाजार - उपसंहार।
मुझे यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। मैंने आज तक कई यात्राएँ की हैं। पिछली छुट्टियों में मैं माथेरान गया था। यह यात्रा मेरे लिए यादगार बन गई है।
बारिश के मौसम में मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ माथेरान जाने का निश्चय किया था। मेरा पड़ोसी में रहने वाला राहुल भी हमारे साथ था। वह कालेज में पढ़ता है। हम मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से ट्रैन में बैठे। ढाई घंटे के सफर के बाद हम नेरल पहुँचें।
वहाँ से हम छोटी ट्रैन जिसे 'मिनी ट्रेन' कहते है उसमें बैठकर माथेरान की ओर चल पड़े। चारों ओर फैली हरियाली, हरे भरे पेड़ और गहरी घाटियों की शोभा का आनंद लेते हुए हम माथेरान पहुँचे। वहाँ हम होटल में ठहरे।
माथेरान का वातावरण मोहक और स्फूर्तिदायक था। लाल-लाल मटमैले रास्ते और घने जंगल मन को मोह लेते थे। दोपहर के समय भी वहाँ की हवा में ठंडक थी। माथेरान में देखने लायक कई स्थल हैं। सुबह और शाम के समय हमने घूम-घूमकर इनमें से अनेक स्थल देखे।
यहाँ के हर स्थल की अपनी अलग सुंदरता और विशेषता है। पर कुछ स्थल तो सचमुच अद्भुत हैं। एको (प्रतिध्वनि) प्वाइंट पर हमने कई बार चिल्लाकर अपनी ही प्रतिध्वनियाँ सुनीं। दूसरे दिन शाम को हमने सनसेट (सूर्यास्त) प्वाइंट पर डूबते हुए सूर्य के दर्शन किए। पैनोरमा (चित्रावली) प्वाइंट ने तो हमारा दिल ही जीत लिया। शारलोट तालाब की शोभा निराली थी। हमने घुड़सवारी की और हाथ-रिक्शे पर बैठने का मजा भी लिया। हमने अपने कैमरों से वहाँ के कई स्थानों की तस्वीरें खीची। वहाँ हम रोज घंटों पैदल चलते थे, पर जरा भी थकान नहीं लगती थी।
माथेरान के छोटे-से बाजार में दिनभर यात्रियों का मेला-सा लगा रहता था। जूते-चप्पल, शहद, चिक्की, रंगबिरंगी छड़ियाँ, सुंदर-सुंदर फूलों के गुलदस्ते आदि चीजें यहाँ खूब बिकती हैं। हमने भी चिक्की और शहद खरीदा।
माथेरान में चार दिन चार पल की तरह बीत गए और हम घर लौट आए। वहाँ के मनोहर दृश्य आज भी मेरी आँखों के सामने तैर रहे हैं।
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