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रूपरेखा : प्रस्तावना - मेरा प्रिय संगीतकार कौन है - उनकी शुरुआती जीवन - एक से बढ़कर एक हिट फिल्में - शास्त्रीय संगीत में उस्ताद - भारतीय संगीतकार - उपसंहार।
परिचय | मेरा प्रिय संगीतकार की प्रस्तावना-विश्व में पढाई के साथ-साथ मनोरंजन का भी होना महत्वपूर्ण है। मनोरंजन के माध्यम से लोगों का जीवन दिलचस्प बीतता है। इसीलिए आज विश्व में मनोरंजन स्तर बढ़ते जा रहा है। और यह स्तर भारत देश में भी देखने को मिल रहा है। कला के क्षेत्र में भारत हमेशा आगे रहा है। भारतीय संगीत के प्रेमी दुनिया के कोने-कोने में पाए जाते हैं। भारतीय संगीत के प्रचार-प्रसार में यहाँ की फिल्मों का बड़ा हाथ है। संगीत लोगों को जीना सिखाता है। संगीत ही वह सुर है जो लोगों को अकेलापन को दूर करता है।
हमारी फिल्मों के संगीत निर्देशकों ने ही सारी दुनिया को भारतीय संगीत की पहचान कराई है। इन्हीं के वजह से आज भारतीय संगीत का सुर पुरे विश्व में गूंज रहा है। वैसे तो सारे ही संगीत निर्देशक अच्छे है परन्तु मेरे प्रिय संगीतकार नौशाद हैं।
नौशाद काफी संघर्ष के बाद फिल्म निर्देशक बने थे। उनका प्रिय वाद्य पियानो था। उसे बजाते-बजाते वे 1940 में फिल्म 'प्रेमनगर' के संगीत निर्देशक बने। एक वक़्त ऐसा था जब कारदार स्टूडियो के मालिक ए. आर. कारदार ने नौशाद को अपने यहाँ से निकाल दिया था, परंतु विजय भट्ट की फिल्म 'स्टेशन मास्टर' में नौशाद ने इतना शानदार संगीत दिया कि कारदार ने उन्हें फिर से अपने यहाँ बुलाया और उन्हें कारदार प्रोडक्शन्स का स्थायी संगीतकार बना दिया।
सन् 1944 में 'रतन' फिल्म आई। उसके संगीत ने नौशाद को सारे देश में लोकप्रिय बना दिया। उस फिल्म के गीत 'अँखियाँ मिलाके', 'सावन के बादलो' और 'दीवाली फिर आ गई सजनी' सारे देश में गूंजने लगे। 'शाहजहाँ', 'दर्द', 'दिल्लगी', 'अनमोल घड़ी' और 'अंदाज' जैसी हिट फिल्मों में नौशाद की संगीत-प्रतिभा खूब चमकी। वे सिनेमा जगत के महसूर संगीतकार बन गए। 1948 में आई फिल्म 'मेला' ने उनकी कीर्ति में चार चाँद लगा दिए थे।
नौशाद ने अपनी कुछ फिल्मों में शास्त्रीय संगीत को भी स्थान दिया। कुछ लोगों को यह पसंद न आया और उन्होंने नौशाद की आलोचना की। तब उन्होंने खूब प्रयास किया और फिर कुछ समय बाद नौशाद ने विजय भट्ट की फिल्म 'बैजू बावरा' में उ. अमीर खान और पं. दत्तात्रय विष्णु पलुस्कर जैसे महान शास्त्रीय संगीतकारों का पार्श्वगायन प्रस्तुत किया। इस फिल्म ने सुपर हिट बना दिया नौशाद को और उन्हें लोकप्रियता भी प्राप्त हुई। फिल्म 'बाबुल' में भी उनके संगीत की खूब प्रशंसा हुई।
नौशाद सही अर्थों में भारतीय संगीतकार थे। उनके संगीत में भारत के हृदय की धड़कन महसूस होती थी। मैंने नौशाद का जमाना नहीं देखा, पर आज भी जब उनकी फिल्में किसी थियेटर में या टी. वी. पर आती हैं तो मैं उन्हें जरूर देखता हूँ। वे भारत में संगीत की पहचान कराई और भारत के लोगों को सही संगीतकार का मतलब बताया।
१४ वर्ष की उम्र में नौशाद ने अपने उत्कट संगीतप्रेम और पिता के संगीतविरोधी होने के कारण अपना घर छोड़ दिया था। साठ का दशक आते-आते भारतीय फिल्मों में पश्चिमी संगीत की हवा बहने लगी। नौशाद ने भी हवा का रुख अपने विरुद्ध देखा तो संगीत देना बंद कर दिया। जो भी कहो लेकिन उस समय में नौशाद का लोकप्रियता अधिक थी। एक से एक बेहतर हिट फिल्में देने वाले नौशाद जी ही मेरे प्रिय संगीतकार हैं।
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