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रूपरेखा : परिचय - करवा चौथ क्या है - करवा चौथ कब मनाया जाता है - करवा चौथ क्यों मनाया जाता है - करवा चौथ कैसे मनाया जाता है - करवा चौथ उपवास - करवा चौथ की कथा - पश्चिमी सभ्यता लोगों द्वारा करवा चौथ - करवा चौथ का कटु सत्य - उपसंहार।
परिचयपति की दीर्घायु और मंगल कामना हेतु हिंदू सुहागिन नारियों का यह पावन पावन पर्व है। करवा चौथ एक ऐसा त्यौहार है जो वर्षों से हर वर्ष महिलाओं द्वारा बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। करवा (जलपात्र) द्वारा कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा को अर्ध्य देकर पारण (उपवास के बाद का पहला भोजन) करने का विधान होने से इसका नाम करवा चौथ है।
करवा चौथ और करक चतुर्थी पर्यायवाची हैं। चंद्रोदय तक निर्जल उपवास रखकर पुण्य संयय करना इस पर्व की विधि है। चंद्र दर्शनोपरांत सास या परिवार में ज्येष्ठ श्रद्धेय नारी को (बायना) दान देकर सदा सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद लेना व्रत साफल्य का सूचक है। करवा चौथ हर साल हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में आता है तथा कार्तिक महीने के चौथे दिन व्रत रखा जाता है।
करवा चौथ एक पारंपरिक त्योहार है जो पहले तो उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब आदि क्षेत्रों में मनाया जाता था परंतु अब देखा देखी यह संपूर्ण देश में मनाया जाने लगा है। इस त्यौहार में शादीशुदा महिलाएं अपने पतियों के लम्बे उम्र के लिए एक पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं इस व्रत में महिलाएं सूर्योदय के साथ व्रत प्रारंभ करती हैं तथा चंद्र उदय के बाद ही उनका यह व्रत पूरा होता है।
करवा चौथ महिला द्वारा मनाये जाने वाला पर्व है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है या यह भी कह सकते हैं कि यह पर्व कार्तिक माह में आने वाली पूर्णिमा के 4 दिन बाद मनाया जाता है। दीपावली से पहले भी इस त्यौहार के दिन निश्चित है हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह व्रत दीपावली से 9 दिन पूर्व रखा जाता है या यूं कह लें कि इस व्रत के दिन से दसवें दिन दीपावली मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह व्रत अक्टूबर या नवंबर महीने में मनाया जाता है।
सुहागिन नारी का पर्व होने के नाते यथासंभव और यथाशक्ति न्यूनाधिक सोलह सिंगार से अलंकृत होकर सुहागिन अपने अंतःकरण के उल्लास को प्रकट करती है। पति चाहे गूंगा हो, बहरा हो, अपाहिज हो, क्षय़ या असाध्य रोग से ग्रस्त हो, क्रूर-अत्याचारी-अनाचारी या व्याभिचारी हो उससे हर प्रकार का संवाद और संबंध शिथिल पड़ चुके हैं फिर भी हिंदू नारी इस पर्व को कुंठित मन से नहीं मनाएगी अवश्य। पुण्य प्राप्ति के लिए किसी पुण्यतिथि में उपवास करने या किसी उपवास के द्वारा कर्मानुष्छान द्वारा पुण्य संचय करने के संकल्प को व्रत कहते हैं। व्रत और उपवास द्वारा शरीर को तपाना तप है। व्रत धारण कर, उपवास रखकर पति की मंगल कामना सुहागिन का तप है। तप द्वारा सिद्धि प्राप्त करना पुण्य का मार्ग है। अतः सुहागन करवा चौथ का व्रत धारण कर उपवास रखती है।
करवा चौथ का त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक के महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। व्रत खोलने का दृश्य भी बहुत मनमोहक होता है। एक हाथ में छन्नी पकड़ कर चंद्रमा को देखा जाता है तथा साथ ही साथ दूसरे हाथ से चंद्रमा को जल अर्पित किया जाता है। फिर पत्नियां पतियों के पैर छूती हैं तथा अंत में पति अपने हाथों से अपनी अपनी पत्नियों को पानी पिला कर उनका व्रत खुलवाते हैं।
रात होने से पूर्व शाम का समय सभी महिलाओं को इस व्रत में बहुत भाता है क्योंकि शाम का पूरा समय महिलाएं बहुत अच्छे से सजती सवरती हैं। सज संवरकर सभी महिलाएं मिलकर करवा चौथ से जुड़ी कथा सुनती हैं। कथा सुनने के साथ-साथ वह भगवान से प्रार्थना करती हैं कि उनका सुहाग हमेशा यूं ही बना रहे तथा सालों साल एक दूसरे का साथ निभाते रहे।
करवा चौथ की कथा में वीरवती की कथा बहुत ही प्रचलित है। करवा चौथ का व्रत दीपावली से 9 दिन पहले होता है तथा दसवें दिन दीपावली मनाई जाती है। यह त्योहार(व्रत)हिंदू समुदाय की विवाहित महिलाओं के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण व्रत कहा जाता है। करवा चौथ के त्यौहार को मनाने के लिए 10-15 दिन पहले ही बाजारों में भीड़ दिखाई देने लगती है क्योंकि महिलाएं एक से बढ़कर एक चीजें अपने लिए खरीदना शुरू कर देती हैं।
करवा चौथ के व्रत में सरगी का भी अपना एक अलग ही महत्व है सरगी उस रीत को कहते हैं जिसमें महिलाएं करवा चौथ वाले दिन सूर्य उदय से पूर्व उठकर स्नान आदि कर अपनी सास के द्वारा बनाई सरगी खाकर अपने व्रत को शुरू करती हैं सरगी में फल व सेंवी दो चीजें महत्वपूर्ण होती है। जितने प्यार से सांसे अपनी बहू के लिए सरगी बनाती है उतने ही उत्साह एवं प्यार के साथ शाम को पूजा के बाद बहुएं अपनी सांसों को उपहार एवं पूजा में रखी थाली का समान आदि देती है एवं अपने सास-ससुर के चरण स्पर्श करती हैं तथा सासें अपनी बहुओं को सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद देती है।
समय, सुविधा और स्वास्थ्य के अनुकूल उपवास करने में ही व्रत का आनंद है। उपवास तीन प्रकार के होते हैं-
भारतीय पर्वों में विविधता का इंद्रधनुषीय सौंदर्य है। इस पर्व के मनाने, व्रत करने, उपवास करने में मायके से खाद्य पदार्थ भेजने-न भेजने, रूढ़ि परंपरा से चली कथा सुनने-न सुनने, बायना देने-न देने, करवे का आदान-प्रदान करने-न करने, श्रद्धेय प्रौढ़ा से आशीर्वाद लेने-न लेने की विविध शैलियाँ हैं। इन सब विविधता में एक ही उद्देश्य निहित है ‘पति का मंगल’।
हर त्योहार की भाँति यह त्योहार भी किसी कहानी से जुड़ा है जो कितने सालों से पति-पत्नी के सच्चे प्रेम का उदाहरण बनी हुई है।
कहा जाता है कि एक समय की बात है वीरवती नाम की एक राजकुमारी थी तथा सात भाइयों की इकलौती बहन होने के कारण वह भाइयों की बहुत लाडली थी औऱ बहुत बड़ा दिल करके भाइयों ने आखिरकार अपनी लाडली बहन की शादी की। शादी के बाद करवा चौथ का व्रत आया, संयोगवश तब वीरवती अपने भाइयों के घर आई हुई थी बहुत ही उत्साह के साथ सभी रस्में पूरी करते हुए वीरवती ने पूरे दिन करवा चौथ का व्रत किया और शाम को चंद्र उदय का बेसब्री से इंतजार करने लगीं।
भूख और प्यास से वीरवती बहुत व्याकुल हो रही थी औऱ भाइयों से बहन का यह हाल देखा ना गया तब भाइयों ने बहन को बहुत बार खाना खा लेने का निवेदन किया पर वीरवती ना मानी तब भाइयों ने अपनी चतुराई दिखाई एवं पीपल के पेड़ की चोटी पर दर्पण से चांद की झूठी छवि बनाई और वीरवती को झूठ बोल उसका व्रत खुलवा दिया। व्रत खोलते ही वीरवती को अपने पति की मृत्यु का संदेश मिला जिसके सुनते ही वीरवती सुध बुध खो बैठी तब उसकी भाभी ने बताया कि झूठा चांद तुम्हें दिखा कर तुम्हारा व्रत तुम्हारे भाइयों ने तुड़वा दिया यह सब सुनकर वीरवती तो मानो टूट सी गई थी। उसको इस तरह रोता देख देवी शक्ति वहां प्रकट हुई और उसके रोने का कारण पूछा तब वीरवती में सब आप बिती उनके सामने सुना दी जिसके बाद सच्ची भावना के साथ फिर से करवा चौथ का व्रत वीरवती ने किया जिसका परिणाम यह हुआ कि आखिरकार यमराज को भी एक पत्नी के दृढ़ निश्चय के आगे झुकना पड़ा।
पश्चिमी सभ्यता में निष्ठा रखने वाली सुहागिन, पुरुष मित्रों में प्रिय, विवाहित नारी तथा बॉस की प्रसन्नता में अपना उज्जवल भविष्य सोचने वाली पति के प्रति पूर्ण निष्ठा का भी करवा चौथ के दिन सब ओर से ध्यान हटा कर व्रत के प्रति निष्ठा और पति के प्रति समर्पण करवा चौथ की महिमा है। हिंदू धर्म विरोधी, ‘खाओ पियो मौज उड़ाओ’ की सभ्यता में सरोबार तथाकथित प्रगतिशील तथा पुरुष नारी समानता के पक्षपाती एक प्रश्न खड़ा करते हैं कि करवा चौथ का व्रत नारी के लिए ही क्यों? हिंदू धर्म में पुरुष के लिए पत्नी व्रत का पर्व क्यों नहीं?
भारतीय समाज पुरुष प्रधान है। 19.9 प्रतिशत परिवारों का संचालन दायित्व पुरुषों पर है। पुरुष अर्थात पति। ऐसे स्वामी, परम पुरुष, परम आत्मा जिससे समस्त परिवार का जीवन चलता है, सांसारिक कष्टों और आपदाओं में अपने पौरूष का परिचय देता है, परिवार के उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर करने में जो अपना जीवन समर्पित करता है उसके दीर्घ जीवन की मंगल कामना करना कौन सा अपराध है? यह एक कटु सत्य है कि पति की मृत्यु के बाद परिवार पर जो दुख और कष्ट आते हैं, विपदाओं का जो पहाड़ टूटता है उससे नारी का जीवन नर्क तुल्य बन जाता है।
पत्नी व्रत की बात पति चाहे कितना भी कामुक हो, लंपट हो, नारी मित्र का पक्षधर हो, अपवाद स्वरुप संख्या में नगण्य-सम पतियों को छोड़कर सभी पति परिवार पोषण के संकल्प से आबद्ध रहते हैं। अपना पेट काटकर, अपनी आकांक्षाओं को कुचलकर, अपने दुख सुख की परवाह छोड़कर इस व्रत का नित्य पालन करते हैं। अपने परिवार का भरण पोषण सुख सुविधा और उज्जवल भविष्य मेरा दायित्व है, मेरा व्रत है। व्रत से दीक्षा प्राप्त होती है। दीक्षा से दक्षिणा प्राप्त होती है। दक्षिणा से श्रद्धा प्राप्त होती है। श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है।
इस व्रत में पत्नियां अपने पतियों के लिए पूरे दिन निर्जल उपवास करती हैं हाथों व पैरों पर मेहंदी लगाती हैं व संपूर्ण सोलह सिंगार करना इस दिन की विशेषता होती है। सुंदर-सुंदर आभूषण पहनना आज के दिन महिलाओं को खूब भाता है इस व्रत की पूजा में भगवान शिव एवं पार्वती माता की पूजा होती है। करवा चौथ का त्यौहार भी हर त्योहार की भाँति, कुछ न कुछ सिखाता है ।जैसे -वीरवती ने अपने भाइयों की बातों में आकर ,बहुत बड़ी भूल कर दी ।हमें एकदम किसी भी बातों में नहीं आना चाहिए क्योंकि आंखों देखा भी हमेशा सच नहीं होता। और उस भूल का कितना बड़ा फल उसको भोगना पड़ा। करवा चौथ एक ऐसा त्यौहार है ,जो पति पत्नी के प्यार को और ज्यादा बढ़ाता है यह पर्व कहने को तो बस महिलाओं का होता है परंतु इस पर्व से कहीं न कहीं संपूर्ण परिवार का माहौल खुशहाल हो जाता है।
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