अस्पताल में आधा घंटा पर निबंध

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अस्पताल में आधा घंटा पर हिंदी निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8, और 9 के विद्यार्थियों के लिए। - Essay Writing on half hour in Hospital in hindi - Half Hour in Hospital Essay in hindi for class 5, 6, 7, 8 and 9 Students. Essay on Half Hour in Hospital in Hindi for Class 5, 6, 7, 8 and 9 Students and Teachers.

रूपरेखा : प्रस्तावना - मुलाकात का कारण - अस्पताल का वातावरण- मित्र के साथ कुछ समय - जनरल वार्ड का दृश्य - ऑपरेशन थियेटर - डॉक्टर-परिचारिकाएँ - मुलाकाती - उपसंहार।

जिंदगी के अनेक रूप हैं। जिंदगी घरों-परिवारों में है। जिंदगी होटलों, क्लबों और थियेटरों में है। जिंदगी मेलों बाजारों में है। जिंदगी का एक दर्दभरा स्वरूप अस्पतालों में देखने को मिलता है।

कुछ दिन पहले मेरा एक मित्र कार-दुर्घटना में जख्मी हो गया था। उसे लीलावती अस्पताल में दाखिल किया गया था। एक दिन शाम को मैं उसे देखने अस्पताल गया। अस्पताल की इमारत सुंदर और शानदार है। उसके विशाल प्रांगण में हरी-भरी और सँवारी हुई लॉन है। आसपास फूलों की आकर्षक क्यारियाँ हैं। फाटक के सामने एक फौआरा है। फौआरे के निकट एक ऊँचे चबूतरे पर भगवान की प्रतिमा है।

मेरा मित्र जनरल वार्ड में था। मुझे देखकर उसने उठने की कोशिश की, पर मैंने उसे मना कर दिया। मैं उसके सिरहाने पड़े स्टूल पर बैठ गया। मैंने उसकी हालत के बारे में पूछा। उसकी तबीयत अब धीरे-धीरे सुधर रही थी। मैंने उसे अपने साथ लाए हुए फल दिए और कुछ देर उससे बातें की। वहाँ दूसरे मरीजों के पास भी उनके मुलाकाती यानी उनके परिजनों उनसे भेट करने आए हुए थे।

जनरल वार्ड में कुल 55 पलंग थे। वहाँ तरह-तरह के मरीज थे। किसी के सिर में पट्टी बैंधी हुई थी तो किसी के हाथ-पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था। एक मजदूर का हाथ मशीन की चपेट में आ गया था। बारह-तेरह वर्ष का एक लड़का पतंग उड़ाते उड़ा छज्जे से गिर गया था। कुछ मरीजों को ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा था। वहाँ कई ऐसे मरीज थे जिन्हें देखकर हृदय भर आता था। महिला मरीजों के लिए अलग वार्ड था।

कुछ देर के बाद मैंने मित्र से बिदा ली। मैं जनरल वार्ड से बाहर आया। सामने ऑपरेशन थियेटर था। एक कर्मचारी एक स्त्री-मरीज को ऑपरेशन के लिए स्ट्रेचर पर ले जा रहा था। वहाँ दो डॉक्टर और कुछ परिचारिकाएँ थीं। मैंने एक्स-रे विभाग भी देखा। उसमें बड़ी-बड़ी आधुनिक मशीनें रखी हुई थीं।

अस्पताल में डॉक्टरों और परिचारिकाओं की चुस्ती-फुर्ती देखते ही बनती थी। मरीजों की सेवा में व्यस्त परिचारिकाएँ दया की देवियों जैसी लगती थीं। मैंने डॉक्टरों को मरीजों की जाँच करते हुए और परिचारिकाओं को आवश्यक सूचनाएँ देते हुए देखा। किसी-किसी मरीज के पास दो-तीन डॉक्टर एकत्र होकर सलाह-मशविरा कर रहे थे।

मुलाकातियों के कारण अस्पताल में बड़ी भीड़ थी। अपने-अपने मरीज के लिए कोई फल तो कोई खाना लाया था। कुछ परिजन अपने संबंधी मरीजों के लिए उनका मनपसंद अखबार या कोई पत्रिका लाए थे। जिन मरीजों की हालत सुधर रही थी, उनके स्वजन प्रसन्न थे। गंभीर स्थितिवाले मरीजों के स्वजनों के चेहरों पर उदासी और चिंता थी।

मुलाकात का समय पूरा होने पर घंटी बजी और मुलाकाती अस्पताल से बिदा हो लगे। मैं भी बाहर आया। अस्पताल की गतिविधियों को देखते-देखते पता ही न चला कि आधा घंटा कब और कैसे बीत गया।


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