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रूपरेखा : प्रस्तावना - बस की आवश्यकता और लोकप्रियता - यात्रा का प्रसंग और लोगों की कतार का वर्णन - अन्य लोगों की भीड़ - बसों का आना और चले जाना - बस में जगह मिलना - बस-स्थानक का अनुभव - उपसंहार।
शहर में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए प्राय: बस का उपयोग किया जात है। इससे बस स्थानक पर हमेशा लोगों का मेला-सा लगा रहता है। इच्छित बस पाने के लिए कभी-कभी आधे घंटे तक इंतजार करना पड़ता है।
सोमवार की शाम थी वह ! मैं घूमने निकला था। चलते-चलते बस-स्थानक पर जा पहुँचा। वहाँ दूर से ही लोगों की लंबी कतार दिख रही थी। हर तरह के लोग उस कतार में खड़े थे। उसमें सूट-बूट पहने हुए बाबू लोग थे, कुर्ता-टोपी पहने व्यापारी थे और मैले-कुचैले कपड़ोंवाले मजदूर भी थे। ऊँची आवाज में लगातार बड़बड़ाने वाली गृहिणियं और खिलखिलाकर हँसने वाली शर्मीली युवतियाँ भी उसमें थीं। कुछ स्त्रियाँ अपने छोटे बच्चों के साथ थीं। कोई समाचारपत्र या कहानियों की पुस्तक पढ़ रहा था। कुछ बूढ़े आपस में बातचीत कर रहे थे।
बस-स्थानक पर एक-दो भिख मांगने वाले लोग भी घूम रहे थे। वे बार-बार सलाम कर पैसे माँग रहे थे। अखबारवाला 'आज की ताजा खबर' का नारा लगाते हुए वहाँ घूम रहा था। खिलौनेवाला और चनेवाला तो वहाँ से हटने का नाम ही न लेता था। सचमुच, बस-स्थानक की चहल-पहल देखते ही बनती थी।
थोड़ी देर के बाद 6 नंबर की बस आ पहुँची। यात्री बस में घुसने लगे। ‘रुक जाना' 'पीछे दूसरी गाड़ी आती है' यह कहते हुए बस-कंडक्टर ने घंटी बजा दी। एक यात्री ने दौड़कर बस पकड़नी चाही, पर बेचारा फिसल कर गिर पड़ा। कुछ मिनट और बीते, दूसरी बस नहीं आई। कुछ देर के बाद दो बसें एक साथ आईं, पर बिना रुके ही घंटी की आवाज के साथ चल दीं। लोग बेचैन हो उठे। कुछ यात्री रिक्शा या टैक्सी में बैठकर चल दिए। लोगों की कतार तो कुछ कम हुई, पर उनकी बेचैनी और परेशानी बहुत बढ़ गई ! इतने में एक खाली बस आ पहुँची। यात्रियों की कतार फिर से 'भीड़' बन गई। धक्कमधक्का करते हुए सभी यात्री बस में चढ़ गए। यह सुनहरा अवसर मैं अपने हाथ से कैसे जाने देता? आखिर इंतजार का फल जो मिला था। मैं भी उस बस में सवार हो गया। बस चल पड़ी, तब पता चला कि एक यात्री की जेब कट गई थी !
सचमुच, बस-स्थानक पर आधे घंटे में ही मानवजीवन का रोचक, रोमांचक और ज्ञानप्रद अनुभव हो जाता है।
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