परीक्षा का डर पर निबंध

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परीक्षा का भय पर हिंदी निबंध - परीक्षा किसे कहते हैं - भय किसे कहते है - विद्यार्थी जीवन में परीक्षा का डर निबंध - Essay on Fear of Exam in Hindi - Fear for exam Essay in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - व्यक्ति या व वस्तु का मूल्यांकन - योग्यता नापने का माध्यम - जीवन यात्रा को सुचारू रूप से चलाना - परीक्षा-भय को समाप्त करना - परीक्षा और भय का संबंध - उपसंहार।

परिचय | परीक्षा का भय | परीक्षा का डर की प्रस्तावना-

परीक्षा के दिन परीक्षार्थी के लिए बड़े कठिन होते हैं। इन दिनों परीक्षार्थी अपनी समस्त शक्ति अध्ययन की ओर केन्द्रित कर एकाग्रचित होकर सम्भावित प्रश्नों को कंठस्थ करने के लिए लगा देता है। ये दिन उसके लिए परीक्षा देवो को प्रसन्न करने के लिए अनुष्ठान करने के दिन हैं, गृहकार्यों से मुक्ति, खेल-तमाशों से छुट्टी और मित्रों- साथियों से दूर रहने के दिन हैं।

परीक्षा परीक्षार्थी के लिए भूत है। भूत जिस पर सवार हो जाता है उसकी रातों की नींद हराम हो जाती है, दिन की भूख गायब हो जाती है और घर में सगे-सम्बन्धियों का आना बुरा लगता है। दूरदर्शन के मनोरंजक कार्यक्रम, मनपसन्द एपीसोड, चित्रहार आदि समय नष्ट करने के माध्यम लगते हैं।


व्यक्ति या व वस्तु का मूल्यांकन-

संस्कृत में परीक्षा शब्द की निष्पत्ति इस प्रकार है- परि (उपसर्ग) + ईक्ष्‌ (धातु) + आ (टापू) । व्युत्पत्ति है-' परित: सर्वत: ईक्षणं-दर्शनम्‌ एव परीक्षा।' अर्थात्‌ सभी प्रकार से किसी व्यक्ति या वस्तु के अवलोकन अथवा मूल्यांकन को परीक्षा कहते हैं।

मनुष्य शरीर की पाँचों उँगलियाँ समान नहीं हैं, इसी प्रकार गुण, योग्यता और सामर्थ्य की दृष्टि से मानव-मानव में अंतर है । उसके ज्ञान विवेक और कर्मठता में अंतर है । विश्व के विभिन्‍न अंगों के संचालन के लिए तदनुरूप योग्यता और सामर्थ्य सम्पन्न महापुरुष चाहिए। विश्व-जन को शिक्षित करने के लिए शिक्षा-शास्त्री चाहिए। विज्ञान से विश्व को आलोकित करने के लिए वैज्ञानिक चाहिए। विश्व-व्यवस्था स्थापनार्थ राजनीतिज्ञ-कूटनीतिश चाहिए। व्यक्ति-विशेष में कार्य-विशेष के लिए गुण हैं या नहीं, पद की प्रामाणिकता और व्यवस्था का सामर्थ्य है या नहीं, इसकी जानकारी के लिए परीक्षा ही एकमात्र साधन है।


योग्यता नापने का माध्यम | विद्यार्थियों की योग्यता कैसे पहचानते है-

विद्यार्थियों की योग्यता पहचाने के लिए उनमें परीक्षा लेना अति आवश्यक है। उदाहरण द्वारा यह बात स्पष्ट हो जाएगी-

  • एक कक्षा में पच्चीस विद्यार्थी पढ़ते हैं । उनको शिक्षा देने वाले शिक्षक समान है। सभी को एक ही समय और निश्चित अवधि में शिक्षा मिलती है । किसी को अधिक नहीं, दूसरे की उपेक्षा नहीं। इन पच्चीस विद्यार्थियों में किसने कितनी शिक्षा ग्रहण की है, इसका पता कैसे लगाएँगे ? उनकी परीक्षा लेकर।
  • दूसरी ओर योग्यता-क्रम निर्धारण करने के लिए भी 'परीक्षा' का माध्यम अपनाना पड़ेगा। प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ आदि स्थानों के निर्णय का निर्धारण बिना परीक्षा के असम्भव है। सौ रिक्त पदों की पूर्ति के लिए सहस्रों आवेदन-पत्र आए हैं। उनमें से सौ आवेदन-कर्ताओं का चयन कैसे करेंगे ? माथे पर तो किसी की योग्यता, विशेषता अंकित है नहीं। बस, एक ही उपाय है- 'परीक्षा'। पद के अनुकूल उनकी योग्यता, विशेषता, शालीनता, शिष्टता की जाँच करके क्रम निर्धारित करेंगे।

जीवन यात्रा को सुचारू रूप से चलाना-

वेग से अच्छे घोड़े का पता चलता है। भार ढोने के सामर्थ्य से अच्छे बैल का, दूहने से अच्छी गाय का और भाषण से मंत्री का। जनसाधारण के जीवन का उद्देश्य है जीवनयात्रा को सुचारु रूप से चलाना। शिक्षा इस उद्देश्य प्राप्ति का निश्चित प्रामाणिक सोपान है । इसलिए वह सीढ़ी-दर-सीढ़ी शिक्षा को 'श्रेणियों' की परीक्षा उत्तीर्ण करता हुआ अपनी योग्यता अर्जित करता है। उस योग्यता के बल पर 'नौकरी ' के द्वार खटखटाता है उसके लिखित या मौखिक अथवा दोनों प्रकार की परीक्षा का सामना करते हुए जीवन-जीने का जुगाड़ भिड़ाता है। अत: आज के युग में इन दोनों तत्त्वों को मुख्यतः 'परीक्षा' से जीवन यात्रा सुचारू रूप से चलता है।


परीक्षा-भय को समाप्त करना | परीक्षा के डर को ख़तम करना-

भय क्या है ? वह मानसिक स्थिति जो किसी अनिष्ट या संकट-सूचकृ संभावना से उत्पन्न होती है और जिसमें प्राणी चिंतित और विकल होने लगता है, भय है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कहना है, 'किसी आती हुई आपदा की भावना या दुःख के कारण के साक्षात्कार से जो एक प्रकार का आवेगपूर्ण अथवा स्तम्भकारक मनोविकारं होता है, उसी को भय कहते हैं। परीक्षा-भय का डर जब परीक्षार्थी पर सवार होता है तो दिन में तारे नजर आते हैं। रातों की नींद हराम हो जाती है । दूरदर्शन के मनोरंजन कार्यक्रमों में दुष्टदर्शन की मनहूस शबलें नज़र आती हैं । रात करवटें बदलते बीतती है, दिन घोटे लगाने में जाता है। सहायक-ग्रंथों को हनुमान चालीसा की तरह रटता है। 'सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही "करता है।


परीक्षा और भय का संबंध-

परीक्षार्थी अपना ध्यान केन्द्रित कर अध्ययन द्वारा परीक्षा के भय को तो पराजित करने की ठानता है, किन्तु परीक्षा का दूसरा भय उसके मन-मस्तिष्क को कचोटता रहता है । यदि कंठस्थ किए प्रश्न नहीं आए तो ? परीक्षक ने प्रश्न-शैली में परिवर्तन कर दिया तो ? यदि निर्दय प्रश्न-पत्र निर्माता ने क्लिष्ट प्रश्नों के अनेक राक्षसों को उपस्थित कर दिया तो ? यदि पाठयक्रम से बाहर के प्रश्न पूछ लिए तो ? यदि 'ओबजेक्टिव' के नाम पर प्रश्नों की संख्या हनुमान की पूँछ की तरह लम्बी हुई तो ?

परीक्षा और भय का अन्योन्याश्रय संबंध है। चोली-दामन का साथ है। बिना भय के परीक्षा का अस्तित्व नहीं और बिना परीक्षा भय का निदान नहीं । महात्मा गाँधी जी का कहना है, 'भयभीत व्यक्ति स्वयं ही डरता है, उसको कोई डराता नहीं।' इसलिए भय का सामना निर्भीक होकर साहस से करके सफलता की दिव्य-ज्योति के दर्शन करना चाहिए।


उपसंहार-

परीक्षा-भय से मुक्ति परीक्षार्थी की सफलता की कुंजी है। प्रगति-पथ का प्रकाश स्तंभ है। उज्ज्वल भविष्य का उदीप्त सूर्य है। एकाग्रचित्त द्वारा नियमित अध्ययन और साहसपूर्ण आत्मविश्वास भयमुक्ति के उपाय हैं। इन दोनों उपायों से परीक्षा-भय सुषुप्त होगा, यदा-कदा जागृत होकर भयभीत नहीं करेगा। कठिन प्रश्न, दुरूह प्रश्न-शैली और अपठित की समस्या स्वस्थ मत में स्वत: हल हो जाएगी । कलम की नोक पर उनके उत्तर अभ्यास अवतरित होते जाएंगे।


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