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रूपरेखा : प्रस्तावना - दशहरे से संबंधित पौराणिक कथाएँ - यह त्योहार मनाने का ढंग - दशहरा त्योहार का महत्व - उपसंहार।
हमारे देश एक त्योहारों का देश है। दशहरा हमारा एक गौरवपूर्ण त्योहार है। यह आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। शरद ऋतु के स्वच्छ और मोहक वातावरण में यह त्योहार भारत के जनजीवन को आनंद और उत्साह से भर देता है।
पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन श्रीराम ने लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त की थी। इस विजय की खुशी सारे देश में मनाई गई थी। इसी दिन की स्मृति में विजयादशमी या दशहरे का त्योहार मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि पांडवों के अज्ञातवास के दौरान इसी दिन अर्जुन ने शमी वृक्ष पर रखा अपना धनुष उतारकर दुर्योधन की सेना को भगाया था और राजा विराट की अपहृत गायों को छुड़ाया था।
मंगल कार्यों का प्रारंभ करने के लिए दशहरे का दिन बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन लोग अपने घरों और दुकानों के दरवाजों को तोरणों से सजाते हैं। लोग अपने औजारों और कल-कारखानों की पूजा करते हैं। किसानों के जीवन में दशहरा नए रंग भर देता है। दशहरे के बाद ही वे रबी की फसल बोने की तैयारी करते हैं। दशहरे के पूर्व नौ दिनों तक सारे देश में रामलीला का आयोजन किया जाता है। दशहरे के दिन रामलीला समाप्त होती है और मेघनाद, कुंभकर्ण और रावण के पुतले जलाए जाते हैं। इस प्रकार दशहरा बुराई पर भलाई की तथा अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। इसीलिए इस त्योहार को 'विजयादशमी' कहते हैं।
आजकल लोग दशहरे के महत्व को भूलकर बाह्य आडंबर को ही प्रधानता देने लगे हैं। इस दिन कुछ लोग शराब पीते हैं और जुआ खेलते हैं। दशहरे जैसे पवित्र पर्व को सुंदर ढंग से मनाना चाहिए। अपने हृदय को स्वधर्म, स्वदेशप्रेम, बलिदान, तपस्या, दान और वीरता जैसे उत्तम भावों से भर देना ही इस त्योहार को मनाने का सही तरीका है।
सचमुच, विजयादशमी हमारा राष्ट्रीय, ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है। दशहरे का त्योहार हमें धर्म, न्याय और मानवता की रक्षा करने तथा हर शुभ कार्य में विजयी बनने का संदेश देता है।
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