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रुपरेखा : प्रस्तावना - विद्यालय की परिभाषा - विद्यालय की भूमिका - विद्यालय की परिकल्पना - विद्यालय के प्रकार - विद्यालय की विशेषता - उपसंहार।
प्रस्तावनाविद्यालय अर्थात विद्यालय जहाँ विद्या का आलय हो, मतलब वो स्थान जहां विद्या प्राप्त होता है। हमारे देश में विद्या को देवी का स्थान दिया गया है और विद्यालय को ‘मंदिर’ का दर्जा दिया गया है। विद्यालय एक ऐसा विषय है, जिस पर अक्सर निबंध लिखने को कहा जाता है। हमारी जिन्दगी का सबसे अहम और ज्यादा समय हम अपने विद्यालय में ही बिताते है। विद्यालय से ही हम हमारे भविष्य में पढ़ने वाले क्षेत्र को तय करते है, इसलिए विद्यालय सबकी जिन्दगी में बहुत मायने रखता है।
विद्यालय अर्थात विद्यालय जहाँ विद्या का भंडार है। ऐसा स्थान जहां अध्ययन-अध्यापन के द्वारा बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाती है। विद्यालय से ही अध्ययन शुरू कर के बच्चें अपने भविष्य को तय करते है।
जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है, हमारा बचपन। यही वो समय होता है जब हम विद्यालय जाते है, नए दोस्त बनाते हैं, अपने भविष्य में उनत्ति पाने के लिए पढाई करते है। विद्यालय जीवन ही ऐसा है जहाँ हम दोस्तों के साथ हंसते है, जीवन का असली आनंद उनके साथ अनुभव करते हैं। इन सब खुशी के पलों में विद्यालय एक अहम भूमिका निभाती है। कभी-कभी ऐसा पल आता है सभी के जीवन में जब हमे मां-बाप से ज्यादा नजदीकी हमारे शिक्षक लगते है जो हमें हर कदम पर हमे सही-गलत समझाते है। विद्यार्थी के जीवन को सही राह एक शिक्षक ही दिखाता है।
विद्यालय जीवन की परंपरा कोई नयी नहीं है। सदियों से हमारा देश ज्ञान का स्रोत रहा है। हमारे यहां आदिकाल से ही गुरुकुल परंपरा रही है। बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी अपना राजसी वैभव छोड़कर ज्ञान-प्राप्ति के लिए गुरुकुल जाते थे। यहा तक की ईश्वर के अवतार श्रीकृष्ण और श्रीराम भी पढ़ने के लिए गुरुकुल आश्रम गये थे। गुरू का स्थान ईश्वर से भी ऊपर होता है, संसार को ऐसी सीख दी। विद्यालय एक ऐसा पड़ाव है जिससे हर व्यक्ति को गुजरना पड़ता है और गुजरना भी चाहिए क्योंकि यह पड़ाव हमें हमारे भविष्य को सवारने में मदत करता है।
बचपन से बड़े होने तक हम अलग-अलग विद्यालयों में पढ़ते है। विद्यालयों के भी कई प्रकार होते हैं, जैसे -
सरकार ने कुछ नियम तय कर रखे हैं, जिसके अनुसार ही विद्यालयों की बनावट और वातावरण होना चाहिए। नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क 2005 (National Curriculum Framework 2005) ने भारत में शिक्षा के स्तर में बढ़ावा देने हेतु महत्वपूर्ण कदम उठायें हैं जो कि बहुत कारगर भी सिध्द हुएं हैं। विद्यार्थियों के समग्र विकास में विद्यालय की विशेष और महत्वपूर्ण भूमिका है। विद्यालयों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह बच्चों की हर छोटी-बड़ी आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाए।
विद्यालय में जब हमारा दाखिला होता है तो उस वक़्त हम नन्हें पौधे की की रहते हैं। हमारा विद्यालय ही हमे सींच कर बड़ा वृक्ष बनाता है। और इस दुनिया में तरक्की का मुकाम हासिल कराता है। अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घड़ियां हम अपने विद्यालय जीवन में ही बिताते है। यह कहना गलत नहीं होगा की बड़े होने पर हम सबसे अधिक विद्यालय में बिताये लम्हों को याद करते हैं। इसीलिए हर बालक को उचित शिक्षा मिलनी चाहिए जिससे वह भविष्य में देश को उनत्ति की ओर ले जाने में अपना योगदान दे सके जिसकी शुरुवात विद्यालय से ही होती है।
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