प्रकृति पर निबंध

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रुपरेखा: प्रकृति ईश्वर की अलौकिक शक्ति - रात में मनमोहक दृश्य - ऋतु परिवर्तन - प्रकृति की अनेक नज़ारे - प्रकृति सौंदर्य का अंतिम दृश्य - उपसंहार।

प्रकृति ईश्वर की अलौकिक शक्ति

प्रकृति सोंदर्य ईश्वर की अलौकिक, अद्भुत, असीम एवं विलक्षण कला का समूह है | प्रकृति का पल-पल परिवर्तित रूप सौन्दर्य पूर्ण, हृदयाकर्षक और उललासमय होता है। प्रातः काल में उड़ते हुए पक्षियों का चहक, चमकती औसो की बूँदें, शीतल सुरभित मलयानिल, भगवान्‌ भास्कर की दीप्त रश्मियाँ, तथा चारों दिशाओं में शांत वातावरण क्या ही अनुपम आनंद का अनुभव कराते हैं। दोपहर में भगवान्‌ अंशुमाली के दर्शनीय तेज गर्मी की प्रचण्डता का आभास प्रकट तथा प्रेयसी कुपित होती है, तो भी सूंदर लगती है। इसी प्रकार प्रकृति के इस कोप में भी सौंदर्य का नजारा देखने को मिलता है। शाम के समय में समुद्र तट पर बहती हुई पानी के लहरें बदलता हुआ मगोहर रूप आश्चर्यचकित कर देता है। सूर्य के स्पर्श से समुद्र जल का रंग अरुणाभ हो जाता है, मानो जल- राशि पर तरल-स्वर्ण गिरकर बिखर गया हो। सूर्य के समाधि लेने पर जल रक्तवर्ण हो जाता है, तो लगता है जैसे गेरू पिघल कर बह रहा हो। कुछ क्षण बीतने पर बैंगनी रंग में बदल जाता है और अंत में जल काला हो जाता है। क्षण-क्षण बदलती प्रकृति-नटी के रूप को आँखें तो देख पाती हैं, लेकिन मस्तिक उतना तेजी से उन रंगों को पकड़ नहीं पाता।

रात में मनमोहक दृश्य

मधु रात्रि में तारों की जगमगाहट, मध्य में पूर्ण चन्द्रमंडल का अपनी रजत किरणों से जगत्‌ को प्रकाशित कर देती है तथा मधुर मकरंद-पूरित वायु के संचरण में प्रकृति की अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। रात में समुद्र तट में आसमान में जो चमक दिखती है उसे देख आँखे निचे करने का मन नहीं मानता। तथा नदियों के किनारे, ऊंचे मकान के खिड़कियों से आप रात में आसमान को देखेंगे तोह आपको तारें की चमक देख मन मोहित हो जाता है।

ऋतु परिवर्तन

ऋतु का अनेक दृश्य सौंदर्य-सुषमा से ओत-प्रोत है। प्रथम पुष्प, भौंरों की गुंजार और कोयलों की कूक, इस प्रकार क्रमश: वसंत का अवतार होता है | वसंती परिधान में पृथ्वी इठलाती है। सुरम्य वन, कुँज, लता, उपवन, पर्वत, तटिनी, जहाँ दृष्टिपात करो, उधर ही कुसुमपूरित डालियाँ दिखाई देती हैं । पंत का प्रकृति प्रेमी हृदय वासंतिक दृश्य को देखकर गुनगुनाने लगता है।

प्रकृति की अनेक नज़ारे

प्रकृति की अनेक नज़ारे को देख मन मोहक हो उठता है। प्रकृति की करवट बदलते ही ग्रीष्म का आगमन हुआ। सूर्य भगवान्‌ की तेज किरणें, लू के थपेड़े, तेजपूरित उष्ण निदाघ, खिले फूलों का मुरझाना, नदियों की शुष्कता तथा मंद प्रवाह, भूमि पर छाया सन्नाटा, विचित्र प्रभाव उत्पन्न करते हैं। ग्रीष्म की तेज लू, प्राणिमात्र की उदासीनता श्याम सघन-घन के स्पर्श से शीतल हो जाती है । मेघावली के जल-सिंचन से सर्वत्र हरियाली छा जाती है। बाहर चमकना, वर्षा से बचाव कर हरित पर्वत श्रेणियाँ, नील गगन में इन्द्रधनुष की सतरंगी आभा, सौदामिनी के चमकने के साथ घोर वज्रपात का स्वर, क्षितिज पर्यन्त हरियाली, जल पूरित नदियाँ, सरि-सरोवरों का प्रवाह, मयूरों का नृत्य, मतवाले भ्रमरों की गुँजार, मेंढकों की टर्‌-टर्‌ ध्वनि, बेग से गुंजित-कंपित वृक्षावली का सिर हिलाकर चित्त को आकर्षित करना, रुकते हुए जल की श्वेत आभा नेत्रों के सम्मुख अद्भुत, विलक्षण दृश्य उपस्थित करती है।

प्रकृति सौंदर्य का अंतिम दृश्य

बादल के बरसने से प्रकृति सौंदर्य का कोई वर्णन नहीं कर सकता। प्रकृति ने ऋतु चक्र नर्तन का अंतिम दृश्य शीत से आगमन किया है। शीत का हृदय चकित करने वाला गति, वायु का सन्नाटा, कोहरा-धुंध का गाढ़ा अंधकार जिसमें कुछ दिखाई नहीं देता, जो दृश्यमान है उसमें चित्त भय से काँप ज़ाता है। नील गगन का मेघ युक्‍त सूर्य शीत के प्रभाव से अधिक प्रज्वलित तेज की सृष्टि करके अपनी सुगंध किरणों से बसुधा में रस-संचार करता है। पहाड़ों की ऊँचाई पर अद्भुत, हृदयाकर्षक प्रकृति सौंदर्य के दर्शन आश्चर्यजनक। हिम पूरित में हिमावृत्त चोटियों पर अद्भुत रंग के नील, ललित कुसुम सहित लताओं तथा ऊँचे-ऊँचे अपार अनगिनत वृक्ष समूहों के शीतल वायु के झोंकों से डगमगा जाता है।

उपसंहार

सूर्य की किरणों की चमक पड़ने से हिमाचल की चोटियों पर इन्द्रधनुष से रंग जाता है जिसे देख लोगों का मन मचल उठता है। कैसा सुन्दर दिखाई पड़ता है। ऋतु में पर्वत पर बदलते प्रकृति का दृश्य से विस्मित होकर बच्चे अपने मित्रों के साथ झूमने लगते है। निर्मल जल में सूर्य चन्द्रमा की परछाईं का हिलोरे लेना, तट पर खड़े वृक्षों का चन्द्रमा की चाँदनी की छटा बिखेरना यह नज़ारा किसी अलौकिक शक्ति से कम नहीं लगती। प्रकृति सौंदर्य के सम्मुख मानवी सौंदर्य भी फीका लगने लगता है।


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