विद्यालय में मेरा अंतिम वर्ष कैसे बीता पर निबंध

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विद्यालय का अंतिम वर्ष मैंने कैसे बिताई पर हिंदी निबंध - स्कूल में मेरा अंतिम वर्ष कैसे बीता पर निबंध - Essay on How I Sent my Last Year in School in Hindi - How I spent the Last Year of School Essay in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - विद्यालय का अंतिम वर्ष - कार्य के प्रति लगन - अध्यापकों का सहयोग न मिलना - परीक्षा फॉर्म भरा जाना - विदाई समारोह का आयोजन - उपसंहार।

परिचय | विद्यालय में मेरा अंतिम वर्ष कैसे बीता की प्रस्तावना-

विद्यार्थी जीवन में एक ऐसा पड़ाव आता है जब हमे अपने स्कूल और विद्यालय से अलविदा लेना पड़ता है। छात्र का ये समय भावुक समय होता है जब वे अपने पसंदिता शिक्षक, अपने प्रिय मित्र, अपने प्रिय सहेली से अलविदा लेना पड़ता है। वे इतने साल बिताये हुए अपने स्कूल और विद्यालय के याद में भावुक होने लगते हैं। सचमुच विद्यालय का मेरा अंतिम वर्ष कुछ ऐसा ही भावुकमय था।


विद्यालय का अंतिम वर्ष-

विद्यालय का अंतिम वर्ष अर्थात प्रमाण-पत्र प्राप्ति के लिए अध्ययन का आखिरी साल। वर्ष का अर्थ 12 मास या 365 दिन होते हैं, किन्तु स्कूल का अन्तिम वर्ष 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक तथा 1 जुलाई से 31 जनवरी तक को अष्ट-मासिका अवधि में सीमित होता है। अष्ट-मासिका भी रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली (दिवाली), ईद, गाँधी जयंती, बाल-दिवस, अध्यापक-दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, सुरक्षित अवकाश, ऐच्छिक अवकाश, रविवारीय अवकाश, शरत्कालीन अवकाश एवं शीतकालीन अवकाश दिवसों को कम कर दें, तो इस अंतिम वर्ष की अवधि पंचमासिका ही रह जाती है।


कार्य के प्रति लगन | पढाई के प्रति मेरी भूमिका-

दसवीं की पढ़ाई, पाँच विषयों के विस्तृत पाद्यक्रम, गधे के बोझ के समान पुस्तकों के भार और परीक्षा रूपी भूत के अज्ञात भय से युक्त यह अंतिम वर्ष कैसे कटा ? मैं पढ़ाई की दृष्टि से न असफलता हूँ और न प्रथम श्रेणी का छात्र। दैनिक स्कूल-कार्य करना, पाठ कंठस्थ करना, प्रश्नों को हल करना, मेरा स्वभाव है। एक कहावत है- "लागी लगन छूटत नहीं, जीभ चोंच जरिए जाए।" मेरा यह स्वभाव इस अंतिम वर्ष में भो यथावत बना रहा, किन्तु विद्यालय व्यवस्था ने मेरे इस क्रम में विध्न डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 15 अगस्त की तैयारी में लालकिले की दौड़, 26 जनवरी की तैयारी में नेशनल स्टेडियम का परेड, स्कूल वार्षिकोत्सव में पथ-संचलन-पूर्वाभ्यास, मेरे अध्ययन में ऐसे विध्न डालते थे, मानों राक्षमगण ऋषियों के यज्ञ को विध्वंस कर रहे हों। संकट के समय धीरज धारण करना ही मानों आधी लड़ाई जीत लेना है। धेर्य और परिश्रम का संयोग सफलता को चेरी बना देता है। ब्राह्म मुहूर्त में उठकर पाठ कंठस्थ करना शुरू कर दिया और 'गृहकार्य' के लिए सायंकालीन खेलों से विदाई ले ली। दिन का विश्राम कम नहीं किया, मन कौ शान्ति को भंग नहीं होने दिया।


अध्यापकों का सहयोग न मिलना-

प्रथम सत्र बीता, अक्टूबर में पढ़ाई का जोर आया। हल्की-हल्की सुहावनी ठंड में पढ़ने का आनंद द्विगुणित हुआ। अध्यापकों का उत्साह ठंडा होता चला गया। विद्यार्थी का हृदय पढ़ने को उत्सुक और अध्यापक अध्यापन से उदासीन । एक-एक पाठ को चींटी की चाल से पढ़ाते तो पाठ की प्रश्नावली को तूफान मेल की चाल से करवाते। कुछ भी समझ नहीं आता | दिसंबर आ गया, किन्तु पाठ्यक्रम समाप्त नहीं हुआ। जो पढ़ाया, घास काटी गई। कई अध्यापक तो कहते, 'इस सवाल का जवाब कुंजी में पढ़ लेना, इस प्रयोग की विधि 'गाइड' में देख लेना आदि।

मैं हताश और निराश। जो पढ़ाया, वह समझ में आया नहीं, जहाँ समझने की चेष्टा की, वहाँ अपवाद स्वरूप दो-चार बार को छोड़कर मिलीं शिक्षक की झिड़कियाँ । विद्यालय विद्या का मंदिर लगने की बजाए, विद्या की मदिरा लगने लगा। इसे देख एक कहावत सही सिद्ध हुई, "जहाँ शैतान स्वयं नहीं पहुँच सकता, वहाँ मदिरा को भेज देता है।"


परीक्षा फॉर्म भरा जाना-

परीक्षा के लिए आवेदन-पत्र भरने से पूर्व 'टेस्ट' हुए। आधी कक्षा अनुत्तीर्ण। अंग्रेजी में मैं लुढ़क गया था। प्रिंसिपल साहब ने आकर चेतावनी दे दी, 'जो बच्चे टेस्ट में फेल हो गए हैं, उनका फॉर्म नहीं भरा जाएगा।' मुझे दिन में तारे नज़र आने लगे। एक वर्ष की बरबादी। मन सहम उठा, आँखों से अश्रु (आसूं) प्रकट हो गए। साथियों ने प्रिंसिपल साहब को मेरे रोने की बात बता दी। प्रिसिपल साहब गजेटेड ऑफिसरी के रूप में थे। बोले, 'फेल होने पर रोओगे नहीं, तो हँसोगे। सारे साल आवारागर्दी और अब रोना। तुम्हारी तो किस्मत में रोना ही लिखा है।

दो-चार दिन बाद अंग्रेजी और गणित के अध्यापकों ने आश्वासन दिया कि फॉर्म सबके भरे जाएँगे। अतिरिक्त कक्षा लगाकर तुम्हारी कमजोरी पूरी की जाएगी। मैं खुश हुआ। एक वर्ष की बरबादी रुकी। ऊपर से गुरुजनों द्वारा वैद्याज बनाने का आश्वासन। उसके बाद ओर दो-चार दिन बीते। कक्षा में घोषणा हुई कि 'जो विद्यार्थी अंग्रेजी और गणित की एक्सट्रा क्लास अटेण्ड करना (भाग लेना) चाहते हैं, वे पाँच-पाँच सौ रुपये शीघ्र जमा करवा दें। अध्यापकों की दया, कृपा, करुणा, सहानुभूति का प्रसाद आर्थिक दण्ड। विवशता अभिशाप है, असहाय, दुर्बल, निर्बल का उपहास है। मरता क्या न करता ? अतिरिक्त कक्षाओं का लाभ उठाया। यहाँ अध्यापकगण जरा प्रेम से पढ़ाते-समझाते थे। कठिनाई का स्नेहपूर्वक निवारण करते थे।


विदाई समारोह का आयोजन-

1 फरवरी आई। अध्ययन-अवकाश मिला। विद्यालय से विदाई ली। विदाई-समारोह हुआ। अध्यापकों ने चरित्र-निर्माण, देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति के और न जाने क्या-क्या उपदेश दिए। आश्वासन दिया कि कोई बच्चा जब चाहे विद्यालय आकर अपने अध्यापक से समझ में न आने वाला प्रश्न समझ सकता है।


उपसंहार-

इस प्रकार विद्यालय में मेरा अंतिम वर्ष चिंतित, भावुक और संघर्ष के साथ बिता।


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