ADVERTISEMENT
वर्षा ऋतु बहुत सुहावनी ऋतु है।
गरमी की ऋतु के बाद वर्षा ऋतु आती है। आषाढ़, सावन, भादो और आश्विन चार महीने वर्षा ऋतु के हैं।
वर्षा ऋतु में बादल गरजते हैं। बिजली कड़कती है। फिर वर्षा होती है। पानी बरसने की रिमझिम आवाज बहुत अच्छी लगती है। वर्षा के कारण चारों तरफ हरियाली छा जाती है। पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं। बागों में मोर नाचते हैं और कोयल कूकती है। किसान खेती के काम में जुट जाते हैं।
वर्षा के जल से नदी-नाले, तालाब-कुएँ, पोखर आदि पानी से भर जाते हैं। वर्षा होगी तो खेती फले-फूलेगी। अकाल नहीं पड़ेगा। अनाज महँगा नहीं होगा। पर्वतों पर पड़ी बर्फ सरिता-सरोवर और नद-नदियों का जल से जीवधारियों की प्यास शान्त रखेगी । जलवायु पवित्र होगा, पृथ्वी का कूड़ा-कचरा धुल जाएगा, चातक की प्यास बुझ जाएगी।
वर्षा से अनेक हानियाँ भी हैं। सड़कों पर और झोंपड़ियों में जीवन व्यतीत करने वाले लोग भीगे बस्त्रों में अपना समय गुजारते हैं। उनका उठना-बैठना, सोना-जागना, खाना-पीना दुश्वार हो जाता है। वर्षा से मच्छरों का प्रकोप होता है, जो अपने दंश से मानव को बिना माँगे मलेरिया दान कर जाते हैं । वायरल फीवर, टायफॉइड बुखार, गैस्ट्रो एंटराइटिस, डायरिया, डीसेन्ट्री, कोलेर आदि रोग इस ऋतु के अभिशाप हैं।
वर्षा ऋतु मुझे बहुत अच्छी लगती है ।
ADVERTISEMENT