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रूपरेखा : परिचय - बाल्यावस्था - लक्ष्य निर्धारित करना - व्यक्ति की रुचि और प्रतिभा - इंजीनियर बनने का उद्देश्य - ध्येय प्राप्ति भाग्य और पुरुषार्थ का प्रतीक - शिक्षकों एवं इंजीनियर का महत्व - उद्देश्य पूर्ति के लिए प्रयत्न - उपसंहार।
परिचय / भूमिका / मेरा जीवन लक्ष्य -इस संसार में मनुष्य का महत्वकांक्षी होना एक स्वभाविक गुण होता है। हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ विशेष प्राप्त करने की इच्छा रखता है। मनुष्य अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करता है। कल्पना तो सबके पास होती हैं लेकिन कल्पना को साकार करने की शक्ति और लगन केवल कुछ लोग ही पूरा कर पाते है।
सभी लोग महत्वकांक्षाओं का लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं। मनुष्य कभी भी बिना उद्देश्य के कोई काम नहीं करता है मनुष्य का हर कार्य सोद्देश्य पूर्ण होता है। कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को सामने रखकर ही कार्य करता है। हमारा जीवन एक यात्रा की तरह होता है। अगर यात्री को पता होता है कि उसे कहाँ पर जाना है तो वह अपने लक्ष्य की तरफ बढना शुरू कर देता है लेकिन जब यात्री को अपने लक्ष्य का ही पता नहीं होता है तो उसकी यात्रा निरर्थक हो जाती है। उसी तरह यदि एक विद्यार्थी को पता होता है कि उसे क्या बनना है तो वह उसी दिशा में प्रयत्न करना शुरू कर देता है और अपने लक्ष्य में सफल भी हो जाता है। जब एक विद्यार्थी का कोई उद्देश्य ही नहीं होता है तो वह अपने जीवन में कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पता है और उसका जीवन एक आम जीवन बन के रह जाता है।
जीवन में बच्चें का प्रथम क्रिया खेलने-कूदने का होता है। जब बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो वह विद्यालय में प्रवेश करता है। उस समय में बच्चों को समझ आता है कि उसे जीवन में कुछ बनना है और उसके सामने अनेक लक्ष्य होते हैं। वह जैसे-जैसे लोगों के संपर्क में आता है वैसे-वैसे उसे अनेक लक्ष्य के बारे में पता चलता है और उसे कैसे पूरा किया जाए उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता बढ़ने लगती है। कभी तो वह सोचने लगता है कि वह डॉक्टर बनेगा और कभी वह सोचने लगता है कि वह अध्यापक बनेगा और कभी इंजीनियर बनेगा, तो कभी ख्याल आता है कि वह वैज्ञानिक बनेगा।
अलग-अलग लोगों के अपने अलग-अलग सपने होते है और अपना लक्ष्य भी अलग-अलग होते हैं। कभी वह डॉक्टर बनकर रोगियों की सेवा करना चाहता है, कभी इंजीनियर बनकर इमारतें बनाना चाहता है, कभी नेता बनकर देश की सेवा करना चाहता है, कभी सैनिक बनकर देश की रक्षा करना चाहता है, कभी वैज्ञानिक बनकर देश का नाम रोशन करना चाहता है।
माता-पिता भी यह कल्पना करते हैं कि वे अपने बच्चे को यह बनायेंगे, वह बनायेंगे, उस पद पर देखना चाहेंगे लेकिन वास्तव में निर्णय तो बच्चों को खुद ही लेना पड़ता है कि उन्हें अपने जीवन में क्या बनना है। माता-पिता को बच्चों पर अपनी मर्जी नहीं थोपनी चाहिए बल्कि सलाह देना चाहिए। विद्यार्थीकाल मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह मानव जीवन की आधारशिला के बराबर होता है। यदि विद्यार्थी इस काल में अपने जीवन के लक्ष्य को निर्धारित कर लेते हैं तो वे जीवन को सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण बना लेता है और अपने देश और समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होता है।
जीवन और जागरण का, पृथ्वी के तमिल्लाच्छन्न पथ से गुजर कर दिव्य-ज्योति से साक्षात्कार करने का, अपने गुणों के विकास से आत्मा को उज्ज्वल करने का, दु:खी, पीड़ित, संत्रस्त मानव को शान्ति और सौख्य प्रदान करने का, लक्ष्य निर्धारित करना लक्षण है। कुछ आलसी लोग लक्ष्य निर्धारण को व्यर्थ समझते हैं। उनका विचार है कि शेखचिल्ली की भाँति ख्याली पुलाव पकाने से क्या लाभ ? जीवन में जो कुछ होना है, वह तो होगा ही। वास्तव में यह विचार कायरता का परिचायक है, निकम्मेपन की निशानी है। निर्धारित लक्ष्य मनुष्य की निश्चित मार्ग को ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है और व्यक्ति के मन में उत्साह का संचार करता है।
जीवन-लक्ष्य का निर्धारण करने में व्यक्ति की रुचि एवं प्रतिभा अहम कार्य करती है । विज्ञान के क्षेत्र में यशोपार्जन की महत्त्वाकांक्षा तभी की जा सकती है जब व्यक्ति को प्रतिभा तीर हो और वैज्ञानिक विषयों में अध्ययन का सामर्थ्य हो। यदि जीवन-लक्ष्य निर्धारित करने में इस सत्य का ध्यान नहीं रखा जाएगा, तो सफलता नहीं मिल सकेगी और जीवन में असफलता का मार्ग नजर आने लगेगा।
अथर्ववेद में कहा है, ' उन्नत होना और आगे बढ़ना प्रत्येक ज़ीवन का लक्ष्य है।' घर के वातावरण से भी जीवन-लक्ष्य निर्धारित करने में प्रेरणा मिलती है। मुझ पर यही बात लागू होती है। हमारा परिवार शिक्षित-जनों का परिवार है। मेरे पिताजी अध्यापक हैं। मेरा बड़ा भाई की भी दो-तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, मेरा मन इंजीनियर बनने की ओर प्रवृत्त है। हमारे यहाँ अनेक साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं। इसके अतिरिक्त बाल-पत्रिकाएँ, हास्य-पत्रिकाएँ सभी प्रकार की श्रेष्ठ पत्रिकाएँ, हमारे परिवार के सदस्य देखते हैं, पढ़ते हैं। इंडिया टुडे, पाँचजन्य की तो अनेक वर्षों को फाइलें हमारे घर में हैं। इस प्रकार के वातावरण में मेरा जीवन-लक्ष्य क्या हो सकता है, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
मैं अक्सर अपने दोस्तों को बात करते हुए सुनता हूँ की वे क्या बनना चाहते हैं लेकिन मैंने तो पहले से ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। मेरा जीवन में एक ही लक्ष्य है कि मैं बड़ा होकर सफल इंजीनियर बनूंगा। मैं इंजीनियर बनकर देश और समाज को मजबूत बनाऊंगा और विश्व में अपने देश का नाम ऊँचा करूंगा।
कुछ विद्यार्थी इंजीनियर इसलिए बनना चाहते हैं क्यूंकि वे अधिक-से-अधिक धन कमा सकें लेकिन मेरा उद्देश्य यह नहीं है। मैं इंजीनियर बनकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहता हूँ। कुछ लोग अपने उद्देश्य को पाकर भी गलत रास्ते पर चल देते हैं वे अपने कर्तव्य को अच्छी तरह नहीं निभाते हैं। मैं अपने लक्ष्य पर पहुंचने के बाद अपने कर्तव्य से नहीं भटकूँगा। मैं ऐसा ज्ञान प्राप्त करना चाहता जिसे लोग पैसा के अभाव की वजह से प्राप्त नहीं कर पाते हैं। मैं इंजीनियर इसीलिए बनना चाहता हु की में देश के लोगों के जीवन में तकनीकी के माध्यम से सुधार ला सकूं।
ध्येय प्राप्ति प्रारब्ध और पुरुषार्थ का समन्वित प्रतिफलन है दोनों में एक ने भी प्रवंचना की, तो ध्येय प्राप्तिही असम्भव नहीं होगी, प्रत्युतजीवन- धारा ही बदल जाएगी । मोहनदास कर्मचन्द गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्रप्रसाद बनने चले थे बैरिस्टर, न्यायविद्; प्रारब्ध ने झटका मारा, बन गए भारत-भाग्य विधाता। वायुयान चालाक-जीवन में मस्त राजीव के प्रारब्ध ने उसे प्रधानमंत्री पद प्रदान कर दिया। इसलिए जीवन में लक्ष्य को पूरा करने के लिए भाग्य और आपका प्रयास दोनों तय करता है कि आपका लक्ष्य सफलता पूर्वक प्राप्त होगा या नहीं होगा।
प्राचीनकाल के धार्मिक ग्रंथ भी घोषणा करते हैं कि दो वर्ग के मनुष्यों का समाज पर बहुत ज्यादा उपकार है तथा उनका हर समाज में होना जरुरी है। पहला वर्ग शिक्षकों का है जो लोगों के अंदर से अज्ञान को निकालकर ज्ञान का दीपक जलाकर उनके जीवन को सार्थक कर देते हैं। दूसरा वर्ग इंजीनियर का होता है जो देश के लोगों के जीवन में तकनीकी के माध्यम से सुधार लाकर मनुष्य के जीवन को सरल बनता है। शिक्षा देना और लोगों का जीवन से कष्ट दूरकर उनके जीवन में हर कार्य को सरल बनाना एक महत्वपूर्ण काम होते हैं और मैंने अपने जीवन के लक्ष्य के लिए इनमें से एक पवित्र लक्ष्य को चुन लिया है। कई इंजीनियर अपने समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं समझते हैं। वे अपना लक्ष्य सिर्फ धन कमाना मानते हैं। यह अपने देश और देश में रहने वाले निवासियों के साथ दुर्व्यवहार है।
मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक सफल इंजीनियर बनना आसान नहीं है इसके लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है। मैंने अपने इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए अभी से प्रयास करने शुरू कर दिए हैं। मेरे माता-पिता का आशीर्वाद सदैव मेरे साथ है। उनका भी सपना है कि मैं बड़ा होकर इंजीनियर बनूँ। मैं इंजीनियर बनकर लोगों के जीवन में तकनीकी के माध्यम से सुधार लाकर मनुष्य के जीवन को सरल बनाना चाहता हूँ। मैं अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए बहुत कठिन परिश्रम करूंगा। मैं जब तक एक सफल इंजीनियर नहीं बन जाता तब तक चैन से नहीं बैठूँगा।
मेरी यह इच्छा है कि मैं अपने लक्ष्य को जल्द-से-जल्द सफलता पूर्वक पूरा करूं। मैं इस काम को पूरा करने के लिए स्थानीय लोगों के साथ-साथ समाज शिक्षक का भी सहयोग लूँगा। मुझे पता है कि यह काम इतना आसान नहीं है लेकिन मेरे दृढ निश्चय और संकल्प से सभी काम संभव हो सकते हैं। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि वे मेरी लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करें। मुझे विश्वास है कि मेरे इंजीनियर बनने के लक्ष्य में मेरे गुरुजन, सहपाठी और मेरे माता-पिता मेरा साथ जरुर देंगे। मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन-से-कठिन परिश्रम करूंगा और एक दिन में अपने लक्ष्य को पूरा कर के अपने परिवार, समाज और देश का नाम ऊँचा करूँगा।
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